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वह देश हमारा है:-

डा० जी० भक्त

(1) जो सभ्यता और संस्कृति के क्षेत्र में अति प्राचीन काल से शीर्ष उपलब्धि प्राप्त कर विश्व के इतिहास में गौरवान्वित रहा, जिसपर ललचायी दृष्टि से दुनियाँ देखती रही, आक्रमण किया, लूटा और कमजोर बनाया, यहाँ तक कि लगातार एक हजार वर्षों से भी अधिक काल तक गुलाम बना रखा।

(2) चिर काल से अपने देश की मर्यादा, संस्कृति, सम्पत्ति और जनजीवन की सुरक्षा के लिए वीर देश भक्त विचारक, साधक देवदत यहाँ तक कि ईश्वर के अवतार तक भी इसके साक्षी ही नहीं, सुधारक बने।

(3) सन् 1857 का सिपाही विद्रोह सफल स्वतंत्रता की लड़ाई की नींव बनकर यादगार बना भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम चरण, जिसमें भारत के नरपुंगवों ने अपनी शक्ति झोंक दी।

(4) बीसवीं शताब्दी में भारत माता ने घनेरों देशभक्त पुत्रों को जन्म दिया। उनके त्याग और बलिदान से हमने विजय पायी।

(5) किन्तु दुख है कि स्वतंत्र भारत चाहे देश के विकास को गिनता तो रहा है किन्तु सच्ची भारतीयता को खोते जा रहे ऐसे बहुतेरे प्रमाण सामने है जो इंगित कर रहे हैं उन अपराधों को, जिनके नाम गिनना भारी पड़ेगा, उससे नैतिक रूप में भारत पिछड़ता जा रहा है।

(6) ध्यान देंगे, भारत के नंगे ऋषि मुनि, कन्द मूल पर जीवन वसर करने वाले जंगलों और गिरि-गुफाओं में निर्वस्त्र समय काटने वाले पवित्र जीवन जीकर वेद रच पाये। उनकी ही परम्परा भारत को जगत गुरु की गरिमा से विभूषित की, किन्तु आज आपके शिक्षित होने पर आज आपके विद्यालयों में आदर्श शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, आचरण निर्माण की शिक्षा नैतिकता, शुचिता, भक्ति, सामाजिक सरोकारों और कर्तव्य बोध से सुरभित देश सेवा की शिक्षा नहीं मिल पा रही। आप योग्य शिक्षक देने में पिछड़ रहे है।

(7) ऐसे कदम बहतेरे हैं जहाँ समाज और सरकार के समक्ष जटिल समस्याय खड़ी है। चुनौतियाँ नजर उठाये झांक रही है। इससे आप का जनतंत्र कमजोड़ पर रहा। आप चुनावों और उनके प्रलोभनों पर ज्यादा सजग किन्तु जनआकांक्षाओं के प्रति, जैसा आप बोलते है, संवेदित कम पाये जा रहे है. साथ निर्णय लेने के स्थान पर जनतंत्र न्याय पालिका और असन्तुष्ट नागरिकों के त्रिमुहानी पर कि कर्तव्य विभूठ खड़े दिख रहे है, यह स्थिति राष्ट्रहित का कौन-सा मार्ग अपना पायेगी ?

(8) किसी भी राष्ट्र की शिक्षा और संस्कृति का स्थान ऊँचा होता है और उसी से उसका विकास और राष्ट्रीय जीवन फलता-फूलता है। आपकी शिक्षा पर मैकाले की सोच भारी पड़ी। आप उसे आज तक स्थान देते रहे। 13 बार आपने अपनी नवीन शिक्षा नीति बनायी किन्तु सफल नहीं हुए। व्यावहारिक रूप से शिक्षण में पुस्तक का महत्त्व घटा। कन्वेन्ट स्कूलों में बोझिल पुस्तकें और भारी मूल्य लागू है। सरकारी विद्यालयों में सरकार वादा कर भी पुस्तक उपलब्ध कराने में पीछे रही। इस पर मनोवैज्ञानिक सोच अपनाकर देखा तो जाय कि इसका क्या लक्ष्य है ? इस विषय पर सकारात्मक सोच लाना अति आवश्यक हैं।
( 9 ) समप्रति देश जननायक स्व० जय प्रकाश नारायण महोदय के व्यक्तित्व पर कुछ विचार रहा है। विडम्बना है कि हमारे देश के स्वातंभयोत्तर शीर्ष नेतृत्व की तुलना सदैव गाँधीवादी स्वरूप में करते रहे तो जयप्रकाश बाबू भी तो इससे कमतर नही थे। राजनीति को सुधरा स्वरूप देने के लिए खड़ा हुए थे। सफल नेतृत्व की आशा की जा रही थी, तिरोहित हो गये। देश हिम्मत कसा किन्तु वह छदम एकीकरण सिद्ध हुआ। आज फिर इनकी याद आ रही है।
(10) हम बार-बार विचारते है। अतीत की ओर जाते है। सभी तो अच्छे ही थे “कवन ठगवा नगरिया लूटल हो।” कबीर दास को यह उक्ति याद आयी। मैंने चट यंत्री 100 वर्षो वाली उलटी 1947 की अगस्त की 15वी उतिथि मध्य रात्रि के उपरान्त गण्डान्त नक्षत्र अश्लेषा, अभावस्या की रात्रि शुक्रवार का दिन था। सतैसा में स्वतंत्रा मिली थी। अतः इसका सही निवारण आवश्यक है। अपने देश में पंडितों की कभी नहीं, किसी मुहुर्त पर इसे स्वरूप दिया जाना चाहिए। आशा है, देश अवश्य ही एक स्वच्छ राजैनतिक वातावरण का संवरण करना चाहेगा। इसके लिए प्रथम तया हमारी अभ्यर्थना में शिक्षा का विषय प्रमुख हो जो प्राथमिक शिक्षा के स्तर से वर्त्तमान परिवेश और परिदृश्य को शिक्षक नियक्ति तक की चेतना में शुचिता का संकल्प निखरकर प्रकाश में आये।

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