विकास की गाड़ी पर चढ़ी समस्याओं की सवारी
डा० जी० भक्त
” इसका असर पड़ रहा विश्व पर भारी , इस पर विचारना है जरुरी । विडम्वना है कि करीब 6 अरब वर्ष पुरानी धरती पर जो मानवी सृष्टि की शुरुआत हुयी उसका इतिहास भी अति पुरातन है । मानव अपनी 100 वर्षों के इर्द – गिर्द के जीवन का अल्पाश ही देखा – सुना और समझ पाया । उनकी अनुभूति का संकलन होता रहा , उसका कारण मानव की प्रखर चेतना रही । आज हम बहुत आगे बढ़ चुके ज्ञान में धर्म में सुख- सविधाओं में , कला कौशल में यातायात तथा संचार साधनों में अब हम विकसित से भी आगे स्मार्ट बनने जा रहे है । थोड़ा – थोड़ा स्मार्टनेश आ भी रहा है । यह स्मार्टनेश क्या है- सम्पत्ति का माल एडजस्ट – भेंट सुनकर लोग मेरी भाषा को नही सराहेंगे । आपही के सामने जो उपभोक्तावाद कहा जा रहा है उसमें झांक कर देखें , कहीं शुचिता , स्वस्थता , सदाशयता सचरिता की पराकाष्ठा पायी जा रही है ? जब हम स्मार्ट बने तो हर दिशा में हमारी शालीनता दिख-
विद्या वाचा वपुषा वस्त्रेण विभवेन च । वकारा पंच संयुक्ता नराः प्राप्नुवंति गौखाः ।
बोली में विद्या में , शारीरिक सौष्ठव में , वस्त्र तथा सदाचार से अर्जित धन की शालीनता से ही शालीन चरित्र और आदर्शमय जीवन प्राप्त हो सकेगा ।
सोचिये हम इतना सब होने पर भी परेशान क्यों है । दुःख क्यों होता है , अपराध , व्यभिचार लूट , शोषण , अन्याय , उपेक्षा , प्रताड़ना , व्यसनवाजी , नशापान आलस्य , अकर्मण्यता पर अपवाद और दुराव समाज में स्मार्टनेश ला सकता है । बच्चों को सच्ची सीख नही मिल रही , प्रारंभिक शिक्षा में विद्रूपता और गिराबट , अनुशासन हीनता तथा अनैतिक आचार ही उदय ले रहा ।
हम अपने समस्त शैक्षणिक जीवन में जो अधिगमन किया , उसमें आदिकाल , वैदिक काल , मध्य युगीन काल की जीवनशैली , राज काज , शासन व्यवस्था , कला कौशल , साहित्य दर्शन , और सांस्कृतिक जीवन को सराहा है । साम्राज्ययवाद की बर्बरता उपनिवेशवाद की लूट और जीवन दर्शन पर चोट , संस्कृति पर आघात जैसे मानवीय दुराचार तथा गुलामी का दवदवा वैज्ञानिक अनुसंधान और औद्योगिक विकास में विश्व युद्ध भी दिखा । जब शान्ति और सुरक्षा के लिए अंतराष्ट्रीय संगठन बने , सामाजिक क्रान्ति और जनतंत्र का उदभव हुआ ।
ज्ञान देने मात्र से सबकुछ मनोनुकूल नही होता , संस्कार पैदा करने से होता है और मानव का संस्कार सोच एवं कर्म की अनुकूलता से बनता है । अतः सभी संस्कारवान हो ऐसा सम्भव नही होता । फिर त्रिगुणात्मक प्रतिफलन म सतोगुण की मात्रा विकसित होने से कर्म की शुचिता और त्याग की भावना आ सकती है जो सबों में एक समान नही हो सकते । फिर यह भी सत्य है कि ज्ञान पाकर और सोच अपनाकर प्रयास करने से जड़ता और दुर्गुणों का पराभव सम्भव है । कुसंस्कार भी मिट जाते है । सच्चा नेतृत्त्व होने से सबकुछ सम्भव है ।
राष्ट्रों के बीच युद्ध की गर्माहट समय – समय पर सिर उठाया ही करता है । आज भी हम प्रत्यक्ष देख रहे है । जातीय और धार्मिक विभेद होते हुए भी जो समन्वय को भावना जगी है वह स्वार्थ का किंचित प्रपंच है या राजनीति का पच्छन्न जाल बुना जा रहा है । यह स्पष्ट रूप से जाहिर है कि विकास से भोग , स्वाथ और अभिमान की ही खेती होती है । जिससे प्रत्यक्ष या परोक्ष सामाजिक शोषण होता है । विषमताएँ सामने आती है , दुराव और शत्रुता भी पनपता है । समृद्धि का केन्द्री भूत लक्ष्य और विकेन्द्रित लक्ष्य का क्या परिणाम होता है , वह विचारणीय है । स्वरुप तो अलग – अलग दीखता है किन्त प्रभाव सब पर पड़ता है । विपदाओं तथा जन कार्यों में एकता पर संकट तो आता है किन्तु दोनों ही पक्ष अपने अपने अभिमान पर जमे डटे रहते है , ऐसी कूटनीति राज सत्ता और राष्ट्रों के एकीकृत सोच को भी धक्का पहुँचता है जो राष्ट्रीय संकट बनता है । अन्तर्राष्ट्रीय समस्या भी खड़ो होती है । आज कोरोना एक समस्या बन चुकी है । इसका विस्तार और स्थायित्त्व पर भी चिन्ता है । जंग चल रहा है किन्तु विचार धारा कम्पायमान है । प्रक्रिया पर राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था का पारस्परिक सामन्जस्य नही बैठ रहा । सभी अपनी राज अपालते हैं ऐसा कहें अथवा इस विषय पर गंभीर है ।
इतना अवश्य है कि विकास भो आवश्यक है । विचार धारा में भी बदलाव आना या विविधता का भी महत्त्व है , किन्तु लक्ष्य की दिशा एक होनी चाहिए । विश्व को जोड़कर चलना प्राथमिकता रखता है । नागरिकों में विघटनकारी या अस्वस्थ विचारधारा का पैदा होना कदाचित घृणा का रूप न ले , इसका ख्याल जरुरी है । कदाचित विरोधी प्रयास विनाशकारी भी हो सकता है या सद्भाव एकता समरसता और शान्ति पर खतरा ला सकता है जैसा कि एक छोटे से परिवार में भी माता पिता पुत्र और पुत्रवधुओं के बीच भी अलगाव देखे जाते है और उनका विखरना कितना मार्दिक होता है ।
अतः विकास का लक्ष्य सदा समृद्ध और स्वच्छ जगत के सम्बन्धों को सुदृढ़ करना होना चाहिए । इसमें ही आने वाली पीढ़ियों का भविष्य निर्भर करेगा । लोग यह भी कह कर अपने सिर का भार हल्का कर लेते है ।