Sat. Apr 20th, 2024

विश्व में कोरोना और भारत

 डॉ . जी . भक्ता

 आज कहना अनुचित होगा कि ज्ञान की मर्यादा समाप्त होती जा रही है और विज्ञान मानव जीवन पर भारी पड़ता जा रहा है किंतु इसमें सत्यता भी है । यह सत्य इसलिए है कि प्राचीन काल में ज्ञान और विज्ञान दोनों की मर्यादा शीर्ष को छूती थी । आज हमने इस आर्ट और साइंस नाम करण के साथ विभेदक भाव अपनाया ।

 ज्ञान की पराकाष्ठा अध्यात्म में है और उसकी पूर्णता दर्शन शास्त्र में है । सोचना पड़ेगा कि मानव नाम अन्य जीवधारी में क्या अंतर है , साथ ही जीना और जीवन तथा सफल जीवन क्या कहलाता है ? हमारी देह और प्राण के बीच क्या भासता है ? उसका अस्तित्व क्या है ? उसका महत्व क्या है और उसकी उपयोगिता क्या है ? उस जीवन में संकट और उसका अवसान क्या बतलाता है ? उस पर मानव का आज तक का चिंतन क्या है ? हम प्राचीनता , वर्तमान दृष्टिकोण और भविष्य के संबंध में जीवन के संदर्भ में क्या विचारधारा अपनाते हैं ? आप बदलाव कष्ट , भय और निदान के संदर्भ में जो विज्ञान खड़ा किया है उसमें आपकी सफलता का मानक अब तक क्या रहा और उपलब्धि कितनी पाये ?

 उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में कोरोना -19 पर दृष्टि डालें । वैश्विक परिवेश और भारतीय के सापेक्ष अब तक जो अध्ययन किया , उसमें नीतिगत व्यवस्था जन्म , उपलब्धि और भविष्य के संबंध में अपने ठोस चिंतन को कैसा स्वरूप देने की तैयारी कर पाए जो आज इसके वेरिएण्ट के आने से भय खाते और अपने आप को चिंतित पाते , साथ ही उसे लोगों के बीच साझा कर उन्हें भी चिंता में डालते हैं तो निदान कौन निकालेगा ?

 आप वैज्ञानिक हैं , चिन्तक हैं , चिकित्सक हैं , चिकित्सा पदाधिकारी हैं , चिकित्सा वैज्ञानिक हैं , मंत्री तक बने हैं । आपके पास लंबी चौड़ी उपाधि और अनुभव के साथ विशेषज्ञ भी माने जाते हैं तो आपके पास अब तक चिकि के लिए हाहाकार मचा है । चिकित्सक के पथ्य से चिकित्सा करते हैं । स्वयं इस विभीषिका से भरा क्रांत रहते हैं । ऐसी अवस्था में धीरज बांधने के लिए शायद एक रामदेव जी महाराज के अलावा कोई नहीं दिखता विभाग तो दिन – रात मास्क सैनिटाइजर और डिस्टेंसिंग के अलावा एक लॉकडाउन छोड़कर दूसरा शब्द बोलने से परहेज रखें । 2019 के नवंबर के बाद से अब तक विश्व इस विपदा से मुक्त होता नहीं नजर आ रहा तो हम विकसित और शक्तिशाली किन मामलों में बतलाए जा रहे हैं ?

 मैं किसी पर दोषारोपण नहीं कर रहा हूँ ना किसी को अयोग्य ही बताना चाहता हूँ किंतु जानना चाहता । कि कमजोरी कहां है कभी कहा है !! कठिनाई कहां और कौन सी है !!! बाधक कौन बन रहो !!!! हमारी सत्ता , हमारे समाज , हमारे नागरिक और स्वास्थ्य विधान से जुड़े संगठन की भूमिका में कहां भूल हो रही !!!!!

 हमारी संस्कृति , संसाधन , ज्ञान संपदा , कार्य विधान , सत्ता शक्ति सेवा भाव , एकता और सहकार कहां किस गुफा में जा छिपा है , उसके लिए अगर हमारी इंटेलिजेंस एजेंसी सक्षम नहीं तो साइबर ऊर्जा से संचारित कोई मशीनी उपलब्धि अगर हो , तो उसका साथ लीजिए क्योंकि ” हमारा सबका साथ ” वाला नारा विफल लग रहा । संसाधनों का समाहरण नियमन , नियंत्रण और सामंजन नितांत आवश्यक होगा ।

 डॉ . जी . भक्ता

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