सदाचार की महिमा
डा ० जी ० भक्त
सदाचरण की महिमा तो सबने स्वीकारी है । यह जीवन को समुज्जवल बनाता है । समुज्जवल का तात्पर्य है समान रूप से प्रकाशमान बाहर भी भीतर भी । मन , वचन और कर्म से ज्ञान प्रभा से ज्ञान रूपी प्रकाश का फैलाव हमारे जीवन में अन्तर्मन का प्रकाश दे , वाणी में सत्य ही उद्घोषित हो । कर्म में शुचिता , सफलता और सम्पूर्णत की झलक , जिससे वातावरण भी प्रकाशमय दिखें । यह भाव समष्टि में सर्वत्र गुंजित हो तो सृष्टि का कल्याण सम्भव हो । यही है सदाचार की महिमा , जिसका लक्ष्य कल्याण ही कल्याण है ।
ज्ञान में रुचि , कर्म में आशक्ति , ईश्वर में भक्ति जीवन में मुक्ति का संचार हमें सदाचार की ओर परित करेगी । मुक्ति के संबंध में लोगों में हमेशा भ्रम व्याप्त पाया जाता है । जीवन की गुत्थी सुलझती नहीं । कर्म और दुष्कर्म का पार्थक्य नहीं समझ पाता । ज्ञान के बिना मुक्ति सम्भव नही । जिस दिन हममें निर्णय की क्षमता प्राप्त हो जायेगी , हम भले – बुरे की पहचान सरलता से कर लेंगे , हममें समति अर्थात ज्ञान का प्रकाश ( बुद्धि , विवेक , मेघा , स्मृति एवं विचार शक्ति का प्रवाह सरल जायेगा , हृदय में प्रकाश , एक प्रकार की खुरी का भाव जो संतुष्टि दिला दे , वहीं से मुक्ति का भाव अथात दुष्कमों से निवृति दिला दें , जीवन में कुछ भी कष्ट कारक न दिखे तो धीरे – धीरें दुर्गुणों का पलायन होकर दुःख का निवारण ही अलौकिक सुख की अनुभूति दिला पायेगा ।
अब आपकी नजर में दुनियाँ दुखमय नहीं लक्षित होगी । यही है जीवन मुक्त की स्थिति । जीवन मुक्ति का अर्थ मृत्यु को प्राप्त होना कदापि न माने सन्तुष्टि पूर्ण जीवन जीना अर्थात मृत्यु के समय कुछ भी आपके लिए चिन्ता का विषय न बचे । निःसोच , निर्विकार निविन्ध जीवन यात्रा , तम से ज्योति की ओर मृत्यु से अमरता की ओर आरोहण ही सदाचार के फल दिखेंगे ।
मैं अपना अनभव कहूँ । मैं शिक्षक के रूप में कुछ काल बिताया । अभी चिकित्सक हूँ । ये दोनों वृत्तियाँ मुझे भायी , क्योंकि इसमें मैंने अपना भी , और समाज का कल्याण कुछ अशों में ही , लेकिन पाया । अगर लम्बी जिंदगी भी मुझे प्राप्त हो तो अनुभव कर रहा हूँ कि यह जीवन भार न लगगा और कल्याण जुटता जायेगा ।
” कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्त्त नाशये ” । यह भाव मुझे अच्छा लगा । गीता में भगवान श्री कृष्णा का यह उपदेश आचरणीय है । जीवन में उत्कर्ष का लक्ष्य लेकर सृष्टि के हितार्थ ऊँचे उद्देश्य जो मानव जीवन से जुड़ा हो , उसकी दिशा में बढ़ना मात्र ही विश्व प्रेम है । विषय तो अपार है , अनन्त है किन्तु हम भी तो अरबों की संख्या में हैं । एकता सम्भव हो तो सफलता की सम्भावना अवश्य बनेगी । …. क्योंकि हम विश्व प्रेम रुपी पथ पर चलने का प्रयास लेकर बढ़ेंगे ।
यह सीख अपनाना और इस उद्देश्य पर ध्यान देना आज हमारे नेताओं को भी चाहिए । उनक पास अवसर , शक्ति , सामर्थ्य और संसाधन सब कुछ उपलब्ध है , जिम्मेदारी भी उनकी ही बनती है । इसी महत्त्वाकांक्षा की सिद्धि के लिए वे जनता के सामने कभी नतमस्तक होते हैं , लेकिन सब कुछ के सम्बल पर जब मुहर लग जाती है तो हमारे जनतंत्र के संचालक पद की गोपनीयता की शपथ लेकर जन – गण – मन से दूर किस वन में विचरने लगते हैं , यह मतदाता जाने , वे तो कर्मठ , सुयोग्य और समाज सेवी है । संविधान उनके साथ है । विकास सिर का भार बना है जो विचारणीय हैं ।