Wed. Apr 24th, 2024

सर्च और रिसर्च के बीच जूझता जीवन

 – डा . जी . भक्त 

कोरोना ने दस्तक दिया करीब दो माह पूर्व | चीन की धरती | संक्रामित हई । महाशक्ति की अग्नि परीक्षा हई । धीरे धीरे फ्रांस , अमेरिका , इटली आदि के नव वैज्ञानिक चैम्पियंस चिकित्सके पछार खाए | किसी की कुछ न चल पायी | दुनिया के इस दौड़ मे अधिकांश देश विभीषिका झेल रहे है | अब भारत को इससे जूझना पड़ रहा है । किसी जमाने भारत विश्व के गौरव अर्जित कर रखा था जो मिटा नहीं है | इतिहास तो इसका साथी है ही | हम इसे भूलते भूलते सभ्यताओ की धूल मे धूल गये है । हमे पाश्चात्य संस्कृति ही लुभाई हम भी स्मार्ट बने | महात्मा | गाँधी जैसे प्रयोग वादी इंसान इंसान को लाचारी का प्रतीक मानना हमारा आज का | आदर्श चिंतक युवाओ के बीच सराहनीय सूत्र बन कर अपना प्रकाश फैला रहा है । हम तो प्राचीनता को अपना प्रतीक मानते थे | आज हम पाश्चात्य पर रिसर्च करने लगे | उची शिक्षा पानी है तो विदेश जाइए | आज की शब्दावली मे विकास ही सर्वोपरि लक्ष्य है । मतलब की आयेज बढ़ना | पीछे मत झको | भूत को अनुभूति भर जाना जाय | वर्तमान अगर संतुष्टि न दिला पाया तो भविष्य के शून्यकाश में छलाँग लगाकर देखे | अगर एक टॉग टूट भी जाय तो हिम्मत न हारे । . . . . . . . . . . . . लेकिन पैर तो दो ही है | . . . . . . . . . . . . . कही दूसरा भी गया तो शून्य का सहारा क्या मज़ा लाएगा ? . . . . . . . . . . सब दिन सरकारी हस्तक्षेप चिकित्सा विभाग की बुराइयो पर निष्प्रभावी रहा | निजी चिकित्सालयो की चलती रही | आज कोरोना के दावत से शीर्ष व्यवस्था त्राहिमाम बोल गयी तो निसहाय जीवन को दया दिखाने वाला कौन | होगा ? सोचना कठिन होगया है । वैकल्पिक व्यवस्था पर ही विश्वास जगाना और जीवन गुजारना भी करीब – करीब सराहनीय इसलिए है की हमने अबतक गरीबी के | बहुतेरे झंझावाल झेलने में सफल रहे है | नर्सी ने कमान संभाल ली है | गंगा जल या तुलसी दल | मै होमीयोपैथ एक किनारे पर खरा हु | आरोग्यकारी क्षमता वाली पद्धति का सेवाव्रत पाल रखा है | सुझाव रख रहा है | अपने क्षेत्र की जनता को अपनी पद्धति को संबंध मे उसकी संभावना पर प्रकाश डाल रहा हू | माँग होने पर जीवनी शक्ति को सबल और संक्रमण रोधी शक्ति प्रदान करने वाली दुष्प्रभाव हीन , | सीधांत सम्मत औषधि देना प्रारंभ कर दिया है उसकी जानकारी साझा करते हुए आयुष सचिव नई दिल्ली से भी संपर्क मे ह | मार्गदर्शक की प्रतीक्षा है | खेद है की विभाग समय पर सुनने का अभ्याशी नही | दीनो के नाथ अनाथ पर कब कृपा दृष्टि लाएँगे | भारत को तो भगवान ही का सहारा है । सरकार जी जान से लगी है  !

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