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सृष्टि का सार ” क “

सृष्टि का सार " क " Dr. G. Bhakta  Articles

 यह विषय बड़ा ही व्यापक है । जहाँ तक ज्ञान की पहुँच है , अबतक यहीं कहा गया है कि यह अनादि , अनन्त , विराट , जीवन्त , कर्म मय , ज्ञान मय , विचित्रताओं से भरी , आश्चर्यजनक है यह सृष्टि । इसका निर्माण किस प्रकार हुआ , कैसे और किसके द्वारा यह संचालित होता है । हम जैसा अपने को जन्म और मृत्यु के बीच कठपुतली की भाँति नचाये जा रहे हैं । उस जीवन का भी अस्तित्त्व नहीं । सिर्फ मानव की सोच ही सब कुछ है । ज्ञान तो शरीर के साथ ही जाता है । मात्र हमारे कर्म ही बच जाते हैं । उसकी याद कर , सुनकर , अपनाकर करते , जीते वही चले जाते है जिसका पता किसी को नहीं है ।
 इससे यही समझ में आया कि यह सृष्टि ही जगत के रुप में ब्रह्मांड के नाम से आज सम्मानित है । जिसे हम ” अखण्ड मंडलाकारं व्याप्तं येन् चराचरम् ” की संज्ञा से जानते हैं । इसी में इस सृष्टि का निर्माता अपनी शक्ति के साथ प्राण और निर्माण का परिचायक बन कर बैठा है ।
 मानव उसकी जैविक सृष्टि का सिर मोड़ बनकर धरती पर आया । उसकी चेतना को उस निर्माता की अपूर्व देन कहें या वह अपनी कृपा का प्रसाद रुप उसे विवेक से विभूषित कर भेजा । इस हेतु हमें ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता में श्रद्धा भक्ति निभानी चाहिए एवं उन्हीं से अनुनय विनय के साथ शरणगत भाव से प्रार्थना -पूजा निवेदित करनी चाहिए ।
 हम जब धरती पर पैर रखें तो क्या पायें ? एक विस्तृत संसार , फल – फूल , दाने , जल , हवा और सूर्य – चन्द्रमा का प्रकाश पाये । पाकर मोहित हो गये । सुखद पाये । संग्रह का भाव जगा । मनोवल को साथ लेकर बढ़े । विकास किए । फिर उसपर स्वत्त्व स्थापित करते हुए भूल हुई । उस जगदाधार को भूलकर अपनी अस्मिता की दुनियाँ सृजित कर डाली । आज इस संसार में हमारी प्रवृत्तियों की दुनियाँ बनकर खड़ा है । प्रकृति अपने पथ पर ही चल रही है । हम विचलित हो चले । हम ईश्वर की उस समरसता को भूले जिसने हमारे अवतरण के पूर्व ही हमारी माँ के स्तन में अमृतमय दूध भेजा था । आज हम उसका मूल्य लेते हैं ।
 यह दुनियाँ अब हमारी है । हम अमेरिका हैं । हम ब्रिटेन हैं । चीन , रुस और पाकिस्तान है । बाकी सभी जहान है । नहीं मानोंगे ?………. तो लो यह आतंकवाद , यह प्रदूषण , ये सुनामी , यह भूकम्प , यह सूखा , यह भू – स्खलन यह वजपात और ये कोरोना के बदलते कर्म और मर्म ।……….अब आया समय सोचने का । चिनतन करने का , संयमित होने का , स्नेह सद्भाव अपनाने का ।
 हमने माता – पिता और वृद्ध लाचारों को ठुकराया , अपनी पत्नी के गर्भ में पलती लाल , फिर पलती बेटियों की हत्या की , परिवार छोटा रहेगा , हम सुख से जीवन यापन करेंगे , कही दूर जाकर अपनी दुनियाँ बसायेंगे । आपके विचारों से कोरोना सहमत हुआ , आपसी दूरी बनाए रखिए । संक्रमण से बचिए ।
………लीजिए आपने तो प्रकृति को नहीं पहचाना ईश्वर के विधान को नहीं जानना चाहा । चक्रवर्तीत्त्व का मजा चखना , अगर भाग्य कमजोर पड़ा तो शोषण उत्पीड़न लूट अपहरण और हत्या ………. इत्यादि । कानून पर भ्रष्टाचार भारी पड़ा , व्यवस्था कमजोरर हुयी मानव पर मानव गोली चलाये , हम होशियार लोग बुद्ध और महावीर के गुण गायें ?……… तो देखिये दुनियों का विकास जहाँ पहुँचा कोरोना द्वारा अभूत पूर्व विनाश , जहाँ न मिलती चिकित्सा जनित चन्द ज्ञान का रहा प्रकाश । यही रहा मानवीय उत्कर्ष का सही आभास । खैर , सही सोच पैदा करने आया है कोरोना ।
 अभी मानव का सृष्टि से अस्तित्त्व नहीं मिटेगा किन्तु संभावित विनाश पर अबतक सही सोच विश्व के किसी कोने से सम्भव नहीं दिख रहा । प्रयत्न चलते ही रहेगा । मनोवल न खोयें ।

 डा ० जी ० भक्त 

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