सृष्टि के संरक्षण के साथ उनके संसाधनों की सुरक्षा एवं विकास में चिकित्सा का महत्त्वपूर्ण स्थान
डा० जी० भक्त
( कहते हैं , स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है )
जब हम सृष्टि को मानते है , तो उसका प्रारंभ और अन्त दोनों के संबंध में सोचना अनिवार्य होता है । सृष्टि में विविधता ही उसकी विराटता एवं अनन्तता का घोतक है । अनन्त नाम , अनन्त स्वरुप असीम आकार , अपरिमित गुण , उनमें छिपे विज्ञान , उपयोग और परिणाम भाव ही विकास के स्त्रोत बनते हैं । मानव की तीन अत्यावश्यक आवश्यकताओं के परिपूरण में तो इनकी भूमिका निहित है हीं , संरक्षण , सुरक्षा और कष्ट निवारण के भी औषध भी हमें वही देते हैं ।
आज दुनियाँ का जो स्वरुप हमारे सामने है वह प्राकृतिक ही नहीं , अनंत रूपों में मानवकृत हैं । मानव उन्हें पाकर कृतार्थ है । उसके कीर्तिमान को भगवान भी सराहते हैं । अगर हमारी सोच ने उसे स्वीकारा कि यह ईश्वर की रची हुई सृष्टि है , तो उन्हें प्रतिष्ठापित किया जो युगों से पूजे जाते रहे । अगर हम इसे कल्पना कहे , तब भी उसकी सार्थकता कलाकार की तूलिका कागज और स्याही में तो सृष्टि के विविध भौतिक जैव और अभौतिक पदार्थ , उर्जा और अन्तरिक्ष एवं उसके ग्रह नक्षत्रादि हैं । हमारे जितने साहित्य , कला , विज्ञान , यंत्र , मंत्र , तंत्रकोष और भंडार है , ये दृश्य और अनुभूति गम्य है । इसके परे भी उद्याम और उद्यम है वे मनसिज या भाव जगत के अन्तर्मूत तथ्य एवं कथ्य रूप में स्वीकार्य है , अर्थात सृष्टि स्थूल से स्थूलतर और स्थूल तम गोचर सत्त्व है , इन्द्रियगम्य है तो सूक्ष्म से सूक्ष्माति सूक्ष्म या सूक्ष्मतम अणु या विभू रूप में भासमान पाये जाते हैं ।
उनमें पोषक एवं संरक्षक गुणात्मकता है तो विनाशक , विध्वंसक , विप्लवकारी से प्रलयंकारी तक के प्रभाव प्रकट होते रहते है । आज भी जनसंख्या वृद्धि को ( जनसंख्या विष्फोट को ) विविध समस्याओं के मद्देनजर विविध टेकनोलॉजी अपनाए जा रहे हैं । गोद लेने , सरोगेटेड संतान लेने , निःसन्ततियों , या पुरुष संतति के लिए जेनेटरिक कोलोनिग की प्रक्रिया अपनाने का विकल्प अगर सुलभ हो जाये तो आनुपातिक रूप में ऐसे भी जनसंख्या में बढ़ोतरी होगी ही एग्रोनॉमी , हरित क्रान्ति , हार्टिकलचर , फ्लोरी कल्चर , पिसीकल्चर , थैचरी , पोल्टरी , डेरी विकास तथा अन्य जैव संसाधन विकास उनके पोषण , उत्पादन , आर्थिक विकास , समृद्धि और सुखद जीवन के ही प्रयास है जिनसे जनसंख्या विकास को लॉछित न कर पोषण और अर्जन का श्रेय सुगम होगा ।
जनसंख्या नियंत्रण के तहत सर्वप्रथम जा जन्म निरोध ( Birth Control ) प्रारंभ हुआ , फिर परिवार नियोजन नाम दिया गया । बाद में वही परिवार कल्याण की संज्ञा पाया । कहना अनुचित न होगा कि सारी कल्पना पर पानी फरेने वाली नीतियों के आलोक में अब चिकनी – चुपड़ी बातों की योजना तब विचारी जा रही , जब तक कोरोना के जंग में कुछ अबतक हुआ , हो रहा और होने वाला है उसे कामयावी कहकर अपने आप को संतुष्ट कर ले या जनता को किसी प्रकार बुझा लेना भर ही कहा जा सकता है । सभी जानते है कि धरती पर जीव , वनस्पति , खनिज तथा ऊर्जा का प्रचलन रोग निवारण , पुष्टिकरण , विष शोधन , दवा निर्माण , पौष्टिक पोषाहार निर्माण में होता रहा है । चिकित्सा शास्त्र भी प्रकृति पर निर्भर है । यह कल्याणकारी पेशा सहित जीवन को स्वच्छ रखने , सुरक्षित रखने , प्रगति के मार्ग पर चलने का श्रेय अपनाना अत्युक्तम लक्ष्य है जो अबतक विश्वास का श्रेय पालता रहा किन्तु कोरोना इसे कमतर करार दिलाने में पीछे नहीं रहा अथवा चिकित्सा जगत जिसे सरकार का संबल प्राप्त है अपना विश्वास जनता के बीच खो रहा है । आज तो धर्म , शिक्षा , न्याय , सुरक्षा अधिकार , शान्ति , सदभाव , सामाजिक सरोकार , प्रेम दया और मंत्री पर मानवता ग्रहण लगा रही , जनमत गठबन्धन का तोहफा सिर पर रखे टहल रहा है , उसमें गति नहीं , सर्वत्र बाधाए झेलता है । शासन में द्विविधा हा तो संसद विधान मंडलों के चलने में बाधक बन रही । आज दुनियाँ कह रही कि वह अपनी सारी शक्ति कोरोना पर लगा रखी है किन्तु परेशानी बार – बार अपना शिकंजा कस ही रही है । यह खुला समाधान नही , इसमें कोई रहस्य छिपा लगता है , क्योंकि विचारक , वैज्ञानिक , चिकित्सा विशेषज्ञ एवं शोधकर्त्ता भी एक बिन्दु पर सहमत नहीं पाये जा रहे ।
अब जब चारों ओर वातावरण गर्म और विशाक्त हो , प्रदूषण और नकारात्मक चिंतन विशाक्त हो , प्रदूषण और नकारात्मक चिंतन उभर रहा हो , आचार – व्यवहार जहाँ समरस न हो और चिकित्सा विधान सही निदान न दे पा रहा हो तो दुर्दिन की घटा गहराती दिख रही है । प्रकृति का भी साथ न देना एक चिन्तनीय उदाहरण बन रहा है ।
क्या , लॉकडाउन का लगातार कायम रहना , मास्क पहन कर चलना , एक दूसरे से दूर रहना ही दुनियाँ को एकता के मार्ग पर ले जायेगा ? फिर चिकित्सा की अपर्याप्तता और सरकार को विवसता में जनता की दीनता को किसकी शक्ति संभाल पायेगी ? विचारकों की कोई सुनता नहीं , राजनीति की गाँठ ढ़ीली है । औघोगिक जगत और • व्यवसाय अर्थ जुटाने पर जुटा है । अपराधी तत्त्व का आतंक आकाश चूम रहा हो , तो जब राम कृष्ण और गाँधी भी जो सीख देकर गये उसका लोप हो रहा लेकिन सोच तो जारी रहेगा ।
अगर सामाजिक जीवन पर गंभीर होकर सोचा जाय तो मानव और मानवता आदर्शो के घरातल से हटकर अब अंतरिक्ष की दिशा तलासना प्रारंभ कर दिया । धर्मान्तरण और जनसंख्या वृद्धि की ओर सरकारें अपने लक्ष्य को भूलकर जनता का मानस मोड़ने पर तुली है , तो जहाँ अंतरिक्ष में उपग्रहों और उल्काओं का युद्ध शुरु होगा तो नीचे समुद्र की शरण … .. ? और दूसरा हो क्या सकता है ? क्या सचमुच ग्यारहवा अवतार ईश्वर का होना चाहता है ?