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 होमियोपैथिक मंच पर कोरोना पर विमर्श जरुरी

 डा० जी० भक्त 

विश्व जानता है कि भारत का आयुर्वेद पुरातन और सर्वोपरि है किन्तु आज के इम्पेरियल सिस्टम के चिकित्सा वैज्ञानिक अपने आप को वैज्ञानिक श्रेय प्राप्त मानते है । कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं कि डा ० सम्युएल हैनिमैन ( 1755- 1843 ) उन्हीं में से एक थे जिन्होंने विज्ञान पर खासकर एटोमिक अस्तित्त्व से भी अधिक गहरायी में खोज कर होमियोपैथी में नेचर क्योर , टोटल क्योर , परमानेन्ट क्योर , निरापद चिकित्सा पद्धति , सर्व लक्षण सम्पन्न चिकित्सा पद्धति का जन्म दिया , जिसका नाम होमियोपैथी रखा गया ।

 होमियोपैथी की निम्न विशिष्टताएँ यहाँ निर्दिष्ट हैं :- 

1. रोग साध्य , कष्ट साध्य और असाध्य माने जाते है । होमियोपैथी में कहा जाता है । कि रोग कष्ट साध्य या असाध्य नही होता बल्कि रोगी विशेष में चिकित्सा में कठिनाई आती है , या इलाज सफल नहीं होता । ऐसी जगह होमियोपैथी की भूमिका खास हद तक कारगर सिद्ध होती है ।

2. एलोपैथी की तरह होमियोपैथी में रोग को दवाया नहीं जाता जो रोग चिकित्सा द्वारा दवाया जाता है उसके तीन प्रकार के दुष्परिणाम देखे जाते हैं । ( 1 ) रोग का दुबारा आक्रमण ( 2 ) रोग का दूसरे रुप में प्रकट होना एवं ( 3 ) दवाओं के दुष्परिणाम |

3. होमियोपैथिक इलाज से रोगों का समूल निदान होता है । इसका कारण है लक्षण समष्टि पर निर्भर होकर दवा का चुनाव करना हम इस बात को अस्वीकार नहीं करते कि हर रोग या पीड़ा के कारण होते है । वह कारण ही सब कुछ सूचित नहीं करता । मूल कारण को भी हम रोगी के लक्षणों में समाहित कर विचारते है । फिर उस रोग के साथ जुड़े सभी लक्षणों में समाहित कर विचारते हैं । फिर उस रोग के साथ जुड़े सभी लक्षणों , सम्वेदनाओं , परिस्थितियों , उन लक्षणों में कभी वृद्धि के रहस्य , उनकी मानसिक अवस्था , रुचि अरुचि , पसन्द नापसन्द , शारीरिक क्रिया कलाप संबंधी अस्वाभाविकता आदि को स्थान देना दवा के चुनाव के मुख्य साधन बनते हैं ।

4. पुराने रोगों में पारिवारिक , पूर्व इतिहास , व्यक्तिगत घटनाएँ इलाज एवं उसके प्रभाव आदि का ज्ञान दवा के निर्धारक बनते हैं ।

5. शरीर की जीवनी शक्ति पर ही रोग और आरोग्य निर्भर करता है । जीवनी शक्ति प्रबल हो तो रोग शरीर को प्रभावित नहीं कर पाता , यह प्रकृति का विधान हैं ।

6. हैनिमैन महोदय ने ” सिमिलिया सिमिलिवस क्योरैन्टर ” के सिद्धान्त में बताया कि रोगी से प्राप्त समस्त लक्षण समुदाय के साथ जिस परीक्षित होमियोपैथिक दवा से समानता जुड़ी पायें , वहीं उस रोगी के लिए उपयोगी होगी । कारण चाहे वायरस , वैक्टिरिया या अन्य कुछ भी हो ।

7. हर पुरानी बीमारी के साथ रोगी की पूर्व घटनाएँ , रोग , उसके इलाज , परिवार में उस रोग के प्रमाण मिलने या माता – पिता , दादा – दादी , नाना – नानी तक के इतिहास से उसकी पुष्टि आवश्यक होगी ।

8. आकष्मिक घटनाएँ , मानसिक विशाद , दुख या आवश जनित कारणों , पेशा , रहन सहन , शारीरिक गठन आदि के साथ उनके व्यसन या अन्य कोई विशिष्ट घटना भो औषधि चयन में सहायक बनेंग ।

9. जहाँ वर्त्तमान रोगी में संक्रामक रोग होने या उसके वैक्सिन लेने की घटना सामने आये चिकित्सा पूर्व पहले उसके नोसोड का प्रयोग करके ही इलाज करें ।

10. किसी महामारी की शुरुआती अवस्था या नये महामारी के संक्रमण में सिर्फ जेनियस एपिडेमिकस का प्रयोग करें । पूर्ण लक्षण विकसित होने की अवस्था में सिमिलिवस का विधान करे अथवा नोसोड तैयार कर प्रयोग में लायें । अगर नये संक्रमण हो और उनके रोक – थाम के उपाय करने हो तो स्वस्थ लोगों को पहले एन्टि सोरिक दवा दें ।

11. कोरोना के वैरिएण्ट फेज की स्थिति में सर्व प्रथम पल्सेरिला 200 शक्ति की तीन खुराके खिलाकर ही विचारें संक्रमण में पाये गये सभी उपलब्ध लक्षणों को आधार बनाएँ । उनके नोसोड तैयार कर प्रयोग करे ।

12. चूँकि कोरोना शीघ्र घातक परिणाम लाता है , श्लेष्मा स्त्राव से प्रारंभ होता है । अति शीघ्र क्षय उत्पन्न करता है अतः सल्फर आयोड आर्सेनिक आयो जैसे एन्टि सोरिक उनके जीवन को दृढ़ता देंगे ।

13. पूरक रुप में कल्केरिया कार्व 200 तथा लाइकोपोडियम 200 बारी – बारी से एक एक खुराक सप्ताह में चलाकर एक माह तक पाँचों फास्फेट एवं Chelidonium 200 का लगातार प्रयोग करने से कोरोना के कोई भी फेज आयग तो वे सामान्य जायेग |

14. अगर आपके प्रयोग क्षेत्र में कोई भी कोरोना का प्रतिरुप सामने आ जाय तो बिना जाँच रिपोर्ट पाये हिप्पोजेनियम 200 की 4 से 6 गोलिया आधा कप पानी में घोलकर 2–2 चम्मच 2–2 घंटे पर 3 दिन पिलायें इससे निश्चित ही लाभ मिलेगा किन्तु इस डोज के बाद जो भी लक्षण दिखे उसके लिए गले की परेशानी में कल्केरिया आयोड श्वांस की दिक्कत में बेला डोना इपिकाक एरालिया स्पंजिया , सूखी खाँसी में स्पंजिया , गले की घर घराहट में एन्टिम टार्ट , एमोन कार्व , रक्त जनित वलगम आने पर फास्फोरस एवं एयर हंगर रहने पर जब शरीर नीला और पंखे की तेज हवा की चाह हाथ पैर ठंढ़े होने पर कार्वोवेज तथा शरीर ठंढ़ा , कपड़ा से ढ़क रखने की चाह सिर को खाली रखना चाहे , भीतर बदन में गर्मी , अतिशय कमजोरी , थोड़ा थोडा पानी की चाह और फिर कै होने पर आर्सेनिक एल्ब देकर छाड़ दे । अगर थोड़ा सुधार होकर रुका रहे तो पहले फास्फोरस बाद में कार्बोवेज दिया जायेगा । आक्सीन की कमी में स्पीडियो स्पर्मा जल्द लाभकारी है ।

 अगर रोगी में कोई खास प्रकार के लक्षण इंगित हो तो उस पर अवश्य विचारें । कैम्फर भी अंतिम क्षण की दवा है ।

15. कोरोना के इलाज में मृत्यु का होना इन परिस्थितियों से अलग किसी आसन्न रोग , स्थायी रोग का इतिहास हो तो उसका सहचर कोलटरल , सिमिलर या कम्प्लीमेन्ट्री अथवा कनकमीटेंण्ट दवा को अपनाएँ । कोरोना में उपयोगी नोसोड वैसिलिनम एवं एविया बहुत ही लाभदायक होगा । कोरोना वायरस में म्युटेशन की चर्या होती है । अतः नोसोड लाभकारी होगा । वैक्सिनिनम पर भी विचारा जा सकता है । उसकी ही कोशिश करनी चाहिए । कोशिश से कभी डरना नही चाहिए । सफलता परिश्रम करने वालों को ही मिलती हैं ।

 मेरा अनुरोध विश्व के होमियो चिकित्सकों से होगा कि वे भी अपनी जानकारी साझा करें । डूबते के लिए तिनका भी तो बनिये ।

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