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 विश्व व्याप्त कोरोना के सहचर संक्रमण एवं उनसे उत्पीड़न का सम्बर्द्धन

 डा ० जी ० भक्त

 जैव चेतनता के मध्य सिर मौड़ बना मानव जब वेदना की कराह , नैतिक अवरोह और आर्थिक पतन की संवेदना से त्रस्त अपने अस्तित्व के बारे में कर्त्तव्य विमूढ़ बैठा है किंवा अपनी ऐतिहासिक गर्वगाथा को वृथा करार देते अपने अनैतिक चरित्र के प्रदर्शन को हो अपने विकास का असली स्वरुप मान बैठा है ।

 अबतक बहुतेरे विशेषण सामने आये जो हमारे नैतिक उत्कर्ष , औघोगिक उन्मेष , आर्थिक पराकाष्ठा , वैज्ञानिक क्षमता , प्रतिरक्षात्मक समृद्धि , ज्ञानात्मक , अभियान्त्रिकी प्रौद्योगिक तकनिकी और अन्तरिक्ष अभियान का गौरव गान उसे महाशक्तिमान बताया , तब तो जन जीवन शैली और स्तर का सत्यार्थ रोग , विरोध – द्रोह , आतंक , शोषण , प्रदूषण एकीकरण , शान्ति स्थापन में खोखलापन का लक्ष्य ही बतला रहा कि :

 ” कौन – कौन कितने पानी में “

 ” चिकित्सार्थ दवा पर खोज अनिवार्य है , आप तो डूबन से डर रहे । आशा और निराशा की निराली छटा में डूबता – उतारता मानव का भविष्य आर्थिक उदारीकरण , वैश्वीकरण के चपेट में इतनी गहराई में जो छिपा कि कोरोना का आघात उसकी अर्थव्यवस्था को हिला डाला । यह सोचते हुए कि हमें सर्व प्रथम देश की आवादी को आजादी की जगह स्वावलम्बी स्वरुप में खड़ा करना चाहिए तो पहला अभियान शराब की बन्द दूकान को चालू करने की बात सूझी , इससे सुन्दर सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम शायद हमारी चेतना में आना गम्भीर प्रश्न बन चुका हो । लेकिन मुझे अपने देश का दिमागी दिवालियापन कहना अच्छा नही लगता । नेतत्व दोष से तो देश दिवाला हो ही सकता है किन्तु देश प्राकृतिक रुप से सदा पूजनीय और गौरवमय है ।

 देश पर दुर्दिन आना घटनाक्रम माना जा सकता है किन्तु देश के गौरव पर असंतुलन , प्रदूषण , अराजककता , आतंक , कुपोषण , असुरक्षा , शोषण , जनआकांक्षा का हनन हो राजनैतिक और सामाजिक दोनों प्रकार के दूषण माने जा सकते हैं । राजनैतिक है तो नेतृत्व में सुधार या साम्वैधानिक पहल विचारणीय हो सकता है । अगर सामाजिक है तो संसद विधान मंडल कार्यपालिका और न्यायपालिका की स्वच्छ और जवाबदेही पूर्ण भूमिका के लिए नेतृत्व का बदलाव ही जनतंत्र की शक्ति और राजनेताओं की देश भक्ति मानी जायेगी ।

 कोई भी देश हो , जनतांत्रिक व्यवस्था पाकर राष्ट्रीय जीवन को अपनी सेवा से समुन्नत , सुरक्षित , विकसित और आत्मनिर्भर न पाया गया तो उस देश के लिए कौन – सा विशेषण उसका आभूषण बन पायेगा ? प्राकृतिक संसाधन में सम्बर्द्धन , मानवीय मूल्यों की गरिमा में क्षरण न आना और मानवीय अस्तित्व पर न दैहिक , न दैविक न भौतिक पीड़ा का प्रकोप हो , अगर हो भी तो मानव संसाधन ज्ञान , विज्ञान , संस्कार , कर्तव्यबोध आज का युग धर्म साबित हो , ऐसा बने हमारा मानव धर्म ।

 आज यह आरोप लगाया जाना कि विश्व में मानवादर्शो पर आघात देश प्रेम का पालन न होना , विखंडित एकता , जनहित पर जनता एवं नेता का विकासवादी दृष्टिकोण की जगह स्वार्थ संवरण पराकाष्ठा को पार कर रहा है तो इसमें कोई गलती न होगी ।

 रुग्नता की चोट बहुआयामी प्रभाव लाती है । कोरोना – विश्व व्यापी होने से अनन्तधर्मी स्वरुप धारण करन , संवेदित करन , उत्पीडित करने और अस्तित्व मिटाने की दिशा तक पहुँचने वाला है । हम रोग को सामाजिक व्यवसाय बनाकर न बरते तो जंग जीता जा सकता है । जो हम आजतक उसके संबध में कर पाये है उसमें कहीं सफलता के फलांश की कोई रश्मि रेखा पर तो अपना स्पष्टीकरण दे पाये ? अबतक तो इसके संबंध में सच्चाई का अनुमान भी उन योद्धाओं को भ्रान्ति में ही डाल रखा है , विजय तो दूर की बात रही ।

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