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स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण

डा. जी. भक्त

किसी विषय से संबंधित नामकरण ” शीर्षक ” को पढ़कर उसके भाव और क्षेत्र का अनुमान लग जाता है । उपरोक्त शीर्षक के महत्त्व और कार्य क्षेत्र जीवन के सबसे बड़े और महत्त्वपूर्ण लक्ष्य लेकर चलते हैं किन्तु उसकी उपलब्धि की पूर्णता और सकरात्मकता में पारदर्शिता जरुरी है । अन्यथा नाम की सार्थकता पर सदा ही प्रश्न उठता रहेगा ।

ऐसा ही रहा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण का स्वरूप / स्वतंत्रता के बाद की भारत सरकार अबतक स्वास्थ्य के मामले में अपने देश को पूरी स्वास्थ्य सुविधा प्रदान न कर पायी । देश की पूरी आबादी को विकास का सम्बल और अवसर तब पूरा होगा जब वहाँ के नागरिक मानसिक और शारीरिक रूप से स्वास्थ्य में इन तत्त्वोंका समावेश होना अनिवार्य होगा ।

प्रारंभ में जनसंख्या पर विचार करते हुए स्वस्थता के साथ जन्म निरोध पर कार्य योजना बन कर पड़ी रह गयी । उसके उपरात उनके अन्य नाम करण यथा परिवार नियोजन , परिवार कल्याणादि हुए । स्वास्थ्य के साथ पोषण और शिक्षण के साथ जनसंख्या निरोध ऐसा भाव जुड़ा कि जनसंख्या उतनी ही सीमित हो जिसका समग्र विकास , भरण – पोषण , शिक्षण और नियोजन की सुविधा उपलब्ध हो ऐसा अबतक सपना ही बना रहा तक तक परिवार कल्याण का सुनहला सबक सामने प्रस्तुत हो गया क्या होना चाहिए परिवार कल्याण कार्यक्रम में नियोजन की तरह कल्याण भी सपना ही दृष्टिगत हो रहा है । कम – से – कम हम जान भी तो पाये कि यह परिवार कल्याण क्या अर्थ रखता हैं ।

चिन्तन का यह क्षेत्र स्वास्थ्य से भी संबंध रखता है । इसका अभिप्राय प्रथम दृष्टि में यह है कि देश की जो जनसंख्या का अनुपात निर्धारित हो वह स्वास्थ्य की यथेष्ट सुविधा का अधिकारी हो , जबकि शताब्दी पूरी करने के करीब पहुँच कर भी हम पूरा न कर पाये , नियोजन को अगर जोड़े तो समस्या और जटिल हो जायेगी । रोजगार और आत्म निर्भरता की दिशा में भी देश पिछड़ा हुआ है ।

कल्याणकारी विचारधारा इसमें क्या जोड़ना है हमें अब तक तो जनसंख्या वृद्धि का क्रम जोड़ ही पकड़े हुए है । आखिर दो में से कोई एक भी तो सफल हुआ होता । सुविधाएँ पूरित होती या संख्या वृद्धि पर रोक लगती । लक्ष्य पूर्ति पर ध्यान दिया जाता ।

एक रहस्यमय विषय छिपा है जनसंख्या निरोध की असफलता के साथ जो हम कल्याण शब्द से विभूषित कर एक बड़ा – सा तोहफा का आश्वासन । सच्चाई यह है कि 1 . हर दम्पति की गोद भरी हो । जैसा कि हमें निर्देश मिला ( 1 ) दो या तीन बच्चे ( 2 ) बेटी हो या बेटे , दो ही अच्छे । इससे आगे और कुछ नहीं जरा मै बताउँ । ध्यान देंगे ( क ) बच्चे स्वस्थ और दीर्घायु हों । ( ख ) बच्चे जन्म से विकलांग या जन्मजात रोगी न हो ( ग ) अल्यायु में मृत्यु न हो ( घ ) संतान मेद्यावान , दीर्घायु और स्वस्थता का हर मानदण्ड पूरा कर पाये ( ड ) इच्छानुसार पुत्र एवं पुत्री की चाह पूरी हो ( च ) परिवार में जन्म निरोध कोई बाइ एक आयु निर्धारित हो उनके लिए जिन महिलाओं के बच्चे अल्यायु में मर – मर जाते है , उनका इलाज से सुधार सम्भव हो । ( छ ) जिन्हें बार – बार गर्भ नुकशान हो जाता है उन्हें इलाज द्वारा स्वस्थ संतान का विधान किया जाय । ( ज ) जिन्हें बेटियाँ जीती है और बेटे मर मर जाते हैं उनका कल्याण हो वैसे ही जिन्हें बेटियाँ ही जन्म लेती हो बेटे नही उनका भी कल्याण होना चाहिए । ( ज ) एक ही संतान बेटा या बेटी जन्म लेकर गर्भाधान रुप जाता है उनपर उचित शोध किया जाय । ( ट ) निःसंतानता ( बाँझपन ) का निदान भी हो । गंभीर रोगियों के वश में जो संताने आज बचपन से रुग्न पाये जा रहे है , उनके संबंध में निदान बढ़दे जायें । तब होगा परिवार कल्याण ( Family welfare ) का अभियान साकार । विश्व के स्वास्थ्य विभाग इस दिशा में आगे आयें । ऐसा है जो काम प्रयोग में सफल भी है लेकिन सर्वे सुलभ नहीं ।

उल्लेखनीय है कि इन्टरनेशनल फेडटेशन ऑफ फर्टिलिटी एण्ड स्टेरिलिटी द्वारा आयोजित एवं इंडियन एसोसियेशन ऑफ फर्टिलिटी एण्ड स्टेरिलिटी द्वारा बम्बई में 1977 की फरवरी में बम्बई मेडिकल रिसर्च सेन्टर के विरला मातुश्री समागार में सम्पन्न कॉग्रेस में मैने अपने महत्वपूर्ण गेनिकालॉजिकल सर्वे पर किये गये शोध के आधार पर ( Homoeopathic Concept of Fertility of Sterility ) विषय को प्रस्तुत किया था अबतक की अवधि में मैंने उपरोक्त इन विषयों से जुड़ो विकृतियों पर सफल प्रयोग किया हैं । जो आगे प्रस्तुत किया जायेगा ।

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