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बिना आधार की जनसंख्या नियंत्रण नीति

डा० जी० भक्त

विचार है कि विश्व में आज बढ़ती आबादी और उसके सर्वतोमुखी जीवनीय प्रश्नों के निदान हेतु निर्धारित जन संख्या के अनुरूप और अनुकूल आधारभूत नीति निर्माण पर प्रथम तया सोचा जाय अन्यथा मात्र अनपेक्षित जन्म निरोधक का विधान जसा कि अब तक चलता राह है, विश्व में मानव समाज का विद्रूप ही लक्षित होगा।

सीमित जनसंख्या का लक्ष्य आदर्श मानव समाज के निर्माण एवं उसके स्थायित्व के साथ उसकी जीवनावधि, पौरूषेय ऊर्जा, स्वस्थ्ता, नीरोगता, अल्गायु मृत्यु से मुक्ति, जन्मजात एवं वशानुगत रोग रहित, विकलांगता मक्त, कुशल, मेद्यावान वरित्रान और लिंगानुपात में प्रजनन क्षमता धारक संतान की क्षमता से युक्त हो। उल्लेखनीय है कि आधार हीन जन्म निरोध प्रकृति और सृष्टि के विधान और उसकी सत्ता पर प्रहार है। यह विषय पूर्णतः आचारनिष्ट और नैतिक कदम की अपेक्षा रखता है। इसपर राजनीति करना बड़ा अपराध होगा। इसके पहल पर प्रकृति के साथ कोई विकल्प या सीमा का प्रावधान सृष्टि से समझौता नहीं कर सकता। शुद्ध और पुष्ट जीवन धारा का विधान राजनैतिक जवावदेही नहीं, वैयक्तिक आचरण और उसकी स्वस्थता में पूर्ण सुचिता की अपेक्षा रखता है। इसके दूरगामी प्रभावों और सम्भावनाओं पर विशद चिन्तनों परान्त ही निर्णय लेना उपयुक्त होगा।

जन्म निरोध, परिवार नियोजन, परिवार कल्याण, आदर्श मानव समाज निर्माण, उसके स्वदायित्त्व के साथ ही जन संख्या नीति संस्कार द्वारा निधारित हो तो जनकल्याण के साथ विश्व सह प्रकृति में समरसता बनी रह सकती अन्यथा इससे भी प्रदुषण का विवाद और विषाद संवरण करना पड़ेगा जो अनुत्तरित होगा।

जान लें, यह जटिल विधान है मानव सत्ता के लिए यह एक चुनौती है किन्तु इसका हल भी सम्भव है।

गेनिकोलॉजिकल सर्वे

Gynaeco Logical Survey

मानव (जन) संख्या का प्रजनन सह स्वास्थ्य सर्वेक्षण और समस्या निवारण के उपरान्त इस कदम को पहल हेतु नीति निर्माण से जोड़कर विचारा जाय। इस विधान पर 1974 में विचारा गया था। सर्वेक्षण कर उसका रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को सुपुर्द किया गया था। स्व० इन्दिरा गाँधी प्रधान मंत्री ने उसपर अपने मंतव्य में उसे परिवार नियोजन पर नई दृष्टि कहा था। बात वही रह गयी मैं परिवार नियोजन का विरोधी नही, पूर्णतः समर्थन देता हूँ सिद्धान्तों के साथ ।

देश की व्यवस्था है नाम है “स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण” बताइए स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से आज तक हम इसके राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त कर पायें? मै चिकित्सक हूँ होमियोपैथ। मुझे पता है कि कितने लोग तथा कथित इस जन्मनिरोध अभियान के दुष्प्रभाव झले और झेल रहे है। इसे राष्ट्रवादी मानक पर नहीं मानवतावादी मानक पर विचार और आम जनता तक उसकी पहुँच हो।

ऐसे निदान का विधान ढूंढने का कार्य प्रारंभ है। सरकार को 1977 में ही दर्शाया और निवेरित किया जा चुका है स्व० प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने उसके सम्बन्ध में सराहना कर चुकी है। आज अर्द्धशदी की अवधि में उस विन्दु पर सरकार भूक बनी रही।

विश्व के जन संख्या विशेषज्ञ स्वास्थ्य विभाग विश्व की सरकारे एवं विचारवान पुरुषों को आगे आकरू इस पर सोचना होगा। यह विषय राजनेता का नही प्रकृति और पौरूषोत्तम चिन्तन का है। इमानदारी और देशभक्ति का है। अगर विश्व इस सन्दर्भ में इससे भिन्न दिशा में बढाता है तो मानव सृष्टि का विध्वंश ही परिणाम होगा। इसमें संदेह नही ।

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