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महाकुंभ में भगदड का जिम्मेदार कमजोर

-: जनतंत्रः-

डा० जी० भक्त

क्या है मुख्य कारण, जिससे यह दुर्घटना घटी और सनातन धर्म को धक्का लगा, जहाँ रामलला मंदिर के निर्माण काल में गर्व से मोदी जीने कहा “मैं रामादर्श को मानता हूँ।” रामादर्श की झलक कहीं भारत वर्णक दिख रही है? आप कहेंगे सर्वत्र राम की पूजा होती है इस लिए कि उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन किया। यह भी उत्तर दे सकते हैं कि राम चन्द्र जी ने रावण को मारा और गौ, ब्राह्मण, धरती और ऋषियों की असुरो से रक्षा कर देवताओं को भय मुक्त कर पाये। पिता की आज्ञा से नहीं, माता कै केयी के हठ पर वनवास को स्वीकार, इसका रहस्य है। पिता दशरथ के पास ममता जुड़ी थी। रामादर्श वहाँ सिद्ध हुआ जहाँ रामचन्द्र जी ने, जहाँ सीता पर अपवित्रता का आरोप लगा, रामचन्द्र जी ने सारी राज सभा सहित अयोध्या की जनता के समक्ष निर्णय छोड़ दिया, और जनता चुप रहा गयी तो रामजी ने अपनी पत्नी को वन में आश्रय दिला छोड़ा।

इससे भी बढ़ चढ़कर एक उदाहरण आता है वीरवर की कथा में जहाँ राजा लक्ष्मी के कथन पर राजा की जान बचाने अपने लिए आश्रय को स्थापित ही रहने देने हेतु वीरवर को अपने प्रिय पुत्र के शरीर को पति पत्नी मिलकर वणि चढ़ाने के लिए निवेदन रखा गया। वीरवर वेतन पर राजा के घट नौकरी कर रहा था। उसने ऐसा किया। ऐसी परम्परा भारत में ही मिलती पायी गयी आदि काल में। इस हेतु उस त्याग पूर्ण परम्परा वाली संस्कृति को सनातन धर्म की संज्ञा मिली। सनातन धर्म है इस देश में। मिटा नहीं है। धरती में कहे या वायुमंडल में अथवा आकाश में किसी की समझ नहीं आ रही यह बात जिनते संत इस कुंभ में विराजे उसमें से किसी में नहीं। दोई जन रही। ऐसा होता तो प्रयाग राज की तपोभूमि जिसे आज एक साथ गंगा यमुना एंव सरस्वती (त्रिवेणी) के संगम को प्रदूषित स्वीकार कर पायी सरकार, उसकी व्यवस्था का भार लेने वाली आज इस गधन्य पाप को सिर पर लेने से पूर्व इस असंख्य प्राण दातृयो पर अपने प्राण पुष्य को भी उनके साथ गंगा में अर्पित कर वैशाली की भूमि पर जन्मी पली जनतंत्र की राजनीति को पवित्र बनाकर अपनो को भी पवित्र कर चुके होते।

जो सन्तों की जमा इस महाकुंभ के अधिष्ठाता रूप में गये है उनमें सनातनता की कण सदृश भी गंध होती तो धरती पर करूण क्रदन के कारण नहीं बनते। राम का मानवादर्श वह था जो वनवास काल में उन्होंने जितने पापियो को मारा उन्हें स्वर्ग भेजा, मुक्त किया, देवत्त्व मिला, लेकिन सम्प्रति इस पुण्य भूमि की गरिमा अपनी आँखो के सामने सदा के लिए विलुप्त कर डाले। ये न साधु न रान्त नहीं राष्ट्र सेवकी सध्यी भूमिका में उतर पाये। इन्हें पशु रामजी की तरह तप करने चला जाना चाहिये अन्यथा इन मृतात्माओं में विलीन हो जाना ही श्रेयश्कर और पुण्यप्रद होता।

भारत बासियों को इसके लिए शोक तब तक मनाना चाहिए जब तक भारत का जनतन्त्र सनातन धर्म की परिभाषा को पूर्णता में प्रतिफलित न कट पाते।

सनातन कहना वहाँ सही उतरा जहाँ लाल बहादुर शास्त्री जी ने ट्रेन दुर्घटना पर स्वयं मंत्री पद त्यागा तथा ताशकन्द समझौता के बाद प्राण भी। भारत माता के नाम पर भी समझौता ? उनके लिए यह असध्य था।

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