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तुलसी जयन्ती


 प्रतिदिन की भाँति अपनी नियमित दिनचटर्यानुसार 04 बजकर 03 मिनट सूर्योदय पूर्व उठकर कमरा खोल पाया कि अन्य दिनों की तरह बूदों की बौछार तो न थी किन्तु आकाश में बादल छाये थे । आज श्रावण मास की शुक्ल पक्ष सप्तमी , सन्त कवि गोस्वामी तुलसी दास की जन्म तिथि रही , जिसे हम प्रति वर्ष ” तुलसी जयनती ” के रुप में याद करते है ।
 
पावस ऋतु में यह दिवस एक खास महत्त्व भी रखता है । कृषि प्रधान इस देश में किसानों के लिये भी यह तिथि यादगार है ।

श्रावण शुक्ला सप्तमी छिपके उगे मान ।
तब तक इन्द्र बरसि है जब तक लगि देव – दान ।।

यह उक्ति कृषि पंडित महात्मा घाघ दास जी की है । वे कृषि एवं मौसम विज्ञान के मर्मज्ञ पारखी माने जाते थे उनका अनुभव भारतीयों के लिए ज्ञान प्रद एवं विश्वसनीय आधार स्थापित किया । मौसम जलवायु और प्राकृतिक परिदृश्य परा आधारित उनका अनुमान एक विज्ञान बनकर किसानों को आज तक भाता रहा है ।
जिस तरह भगवान रामचन्द्र जी से उनके नाम ज्यादा महत्त्व रखते है , उसी तरह घटनाक्रम के वैशिष्ट्य को ध्यान में रखकर जैसा घाघ जी अनुमान करते थे वैसा ही घटित होता था । यथा

” सावन मास वहे पूरवैया , वेंचू बरदा कीनू गैया । “

घाघ जी ने कहा कि इस महीने पुरबी हवा वहे तो खेती सूखेगी । इस हेतु बैल हटा कर गाय खरीदना लाभकर होगा । उसी प्रकार –

” सीस डोले मह भरे , पात डोले वज़ पड़े । “

धीमी हवा बहने पर तेज बारिस के आशा बनती है , जबकि तीव्र झोके से हवा बहे तो वर्षा का अभाव मानिए ।
प्रकृति को पल – पल अपनी दृष्टि में लायें और घटनाक्रम का अवलोकन कर विचार को गति दें और परिणाम पर दृढ़ आष्था रखें तो एकत्र और जीवन्त विज्ञान का प्रणयन होगा किन्तु प्रयोगकर्ता को पारखी के साथ संग्रह शक्ति का अभ्यासी बनना होगा । एक निष्ठावान प्रकृति प्रेमी ही ऐसा कर पायेगा । ऐसे पुरुष की उपस्थिति आज भी प्रासंगिक होगी । 
डा ० जी ० भक्त

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