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विरोधाभास से गुजरता मानव समाज
Human society goes through contradiction
विरोधाभास से गुजरता मानव समाज Human society goes through contradiction Dr. G. Bhakta

सामाजिक संरचना की नींव एकता एवं आपसी समर्थन के बल पर खड़ी होती है । उसका एक मिला जुला लक्ष्य होता है । मानवीय चेतना में विचारों के ज्वार उत्पन्न होते रहते है जिनसे एक सशक्त विचारधारा काम करने लगती है , तब समाज एक अलग स्वरुप लेकर निखरने लगता है । इससे एकता विखंडित होती है । उसके पृथक परिणाम आते है ।
अब परिणामों पर चिंतन प्रारंभ होता है । उसके भावी , परिणाम का भी आकलन होना स्वाभाविक लगता है । मंथन प्रारंभ होता है । सम्भावनाओं के परिप्रेक्ष्य में समर्थन एकता भी विभाजित होती है । संघटन विघटन की अवस्था भी आती है विभाजित समाज का स्वरुप भी अपनी शक्ति , और संसाधन के अनुसार आगे बढ़ता है । नयी चेतना जन्म लेती हैं । अपने – अपने लक्ष्य , अपनी – अपनी सोच , अपनी कार्य क्षमता अगर समरसता के साथ विकास के मार्ग पर प्रगति पाये तो अलग – अलग विचारधाराओं के महत्त्व सामने आते सम्यताएँ विकसित होती और गुणवत्ता के साथ स्थायित्व कायम होती एवं लम्बी अवधि तक जीवन्त पायी जाती है तो उस समाज की एक अपनी संस्कृति कहलाती उस तरह अबतक समाज चलता रहा । संस्कृतियाँ विकसित हुयी , दुनियाँ विविध स्वरुप मानव को पहेचान दे पायी सृष्टि के स्वरुप को मानव ने नये रुप दिये । मानव सृष्टि । जब शिरमौड़ बना तो भारत जगत गुरु की मान्यता पाया ।
आज वही विश्व और वही मानव वैचारिक मतभेदों एवं अन्तर्विरोध से जुझ रहा है । खण्ड – खण्ड में समाज बँट चुका इसका कारण क्या उसे जानना या जिसका इतिहास भी विरोधभासों से भरा है । यहाँ एक बात बड़ा महत्त्व रखती है कि संघर्ष तो सुधार के साथ विकास की योजना लेकर चलता है किन्तु मानव की महत्त्वाकांक्षा मानवता पर भारी पड़ने लगती है ।
एक और बात सामने आती है । अगर रोग है तो उसका कारण है । कारण है तो दवा है । लेकिन कारण अगर अपना स्वरुप रखता है तो उसका इलाज सम्भव है अन्यथा जो रुप बदलता है उसका निदान कठिन हैं । कोरोना से दुनियाँ को जब साक्षात्कार हुआ तब से विश्व खतरे के सागर में डूबता – उतराता हुआ अपने अस्तित्त्व के संबंध में चिन्तित रह – रहा है ।
आज विश्व के दो सौ से अधिक देश इस विनाशकारी वायरस के तांडव का कहर झेल रहा है । आज दो शक्तिशाली राष्ट्र इन्हीं दो ध्रवों के बीच अपनी पूरी अत्याधुनिक शस्त्रास्त्रों की ताकत लिए युद्धोन्मत हैं । सहयोगी राष्ट्रों में भारत अमेरिका के साथ है । ज्योतिषों के पूर्वानुमान में भारत एक ओर कोरोना के जंग में है तो दूसरी ओर अपने ही पड़ोसी भाईयों के साथ पूर्व की तरह टकड़ा रहा है । इसके विजय की कामना के साथ राजनैतिक जगत में अच्छी स्थिति साबित होने वाली बतायी जा रही है और शक्तिशाली राष्ट्रों की पंक्ति में अपना कीर्तिमान स्थापित करने की भी आशा है । इस पर विश्वास किया जा सकता है । किन्तु भारत जो अपनी बुनियादी पावदान पर अपने देश की जनता को विश्वास में नहीं ला पाया जिसकी कड़ी पुरानी पड़ती जा रही तो संदेह का बादल भी मंडराता हुआ नजर आता है । जैसे राज्यों में कोरोना काल में सता पलट की स्थिति को विरोधाभासी परिवेश की तरह लिया जा रहा है । घटक दलों के बीच अन्तद्वद समयोचित नहीं । ऐसी गतिविधियों से देश के नाम गलत संदेश उसके अन्तर्निहित लक्ष्य को कमजोर कर सकता है जो अपेक्षित नहीं ।

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