चिंता और चिंतन
आज हमारी चिंता इस विश्व ब्यापि कोरोना वायरस पर केंद्रित है किंतु हमारा चिंतन इससे ज्यूर अनेक बिन्दुओ पर बता हुआ है ! हम इसके दुष्प्रभाव से कैसे बचे | इसकी चिकित्सा क्या है ? इसके रोकथाम को प्रभावी कैसे ब्नाया जाए । इसके बिजिलेंस , पेस्टीलेंस और सर्विलेंस को व्यापक रूप से लेकर चला जाए , सोसाल डिस्टेनसिंग को सफल बनायजाए | जान अवसक्ताओ की आपूर्ति पर सुचारू रूप से सोचा जाए | इनके चिंतन मे सरकार लगी है । विचारक सोच है है । लेकिन इससे हमारी चिंता घाट नई रही | हममे से भूतेरे इसे समझ नई परहे है | उनकी हमारे उपर व्यवश्ता से ज्यूर कानूनी प्रहार भी एक विषय है । हम उनकी चिन्ताओ की सुधार और स्माधान मे जुटे हुए है । जिसे वे कही ललचाई दृष्टि से ले रहे है । तो कोई उससे अपने निजी निर्माण में जुट गये है । कोई कानून की अवहेलना क्ररहे है । कोई विरोध पर विचार दौराते है । पुलिस उनपर कराई से पेस आराही है । उन्हे घर मे अलग अलग दूरी ब्नाकर रहने का आदेश है । सुधार के प्रयास से एक स्मस्यागत कोरोना का निर्माण होरहा है । कितना अच्च्छा होता की हम इस उबौपां का स्माधान योग क्रिया और प्रार्थना से कर इसे सकारात्मक , सांतिप्रद और सुधार जन्म ब्ना लेते | शांति स्थापित होती और आत्म शक्ति का विस्ताए होता और जान कल्याण , सुचिंतन और हमारे अभियान को बाल मिल पता | खर्च भी काम होता | ताकि सरकार को भी बाल मिलता । अगर हम एक शाम उपवास करते तो आर्थिक समायोजन तो होता ही आत्म शक्ति के साथ निर्विकार , सूछंट्दान कॉडिषा मिलती । इस काल रूप वायरस का नाश प्रारंभ हो जाता | जब हमारे पास दवा और इलाज का दीवालीयालियापन आया तो सेवा के सेवक महत्वपूर्ण हिगाये और डाक्टर अपनी ड्यूटी से दूरी बना लिए । उन्हे सरकार घर बैठे इनाम के रूप में तीन माह टक्क पुरस्कार की घोषणा की है । ज़रा सोच बदलिए तब डंडा सहने की नौबत न आएगी | और जान ले , डंडा भी कोरोना का विकल्प नहीं है । चिंता का दूसरा मामला चिकित्सातंत्र मे डॉवा और टीका जनित विधान का दिवालियापन है । सभी जानते है की इस विकसित युग के चिकित्सा विज्ञान की पधाई पर तथा इंजीनियरिंग , टेक्नॉलॉजी पर करोरो के खर्च और स्वर्ग सी व्यवश्ता है । वे समय पर काम न आय , सोच न जागी , वे भी भयभीत हो गये | इसका क्या उपाय है ? ज़रा सोचिए | चेचक का विनाशकारी नृत्य वर्षों तक चलता रहा | मानव की अपार क्षति हुई । मृत्यु और नेत्रहीनता , कुरुपता और अन्य दुस्प्रभव सृष्टि पर तबाही लाई । जेनर नाम के वैज्ञानिक ने दावा का अनुसंधान कर टीका के रूप के प्रयोग कर इसका अंत किया | कल्याण तो हआ किंतु इस टीका के काश बाद में इस वैक्सीन का इस प्रभाव धीरे धीरे प्रकट हआ | आज कैंसर उसके ही इसपरभाव है । इतना ही नही वह मानव जाती मे रोग निवारक क्षमता में कमी लाई । आपने एक सिरा से अस्वीकार किया इसका वैक्सीन नही है । आपने यह भी कहा की इसके लए प्रभावी चिकित्सा उपलब्ध नही | बात खत्म होगआई । सामाजिक सभ्यता की असफलता है या सचाई से भागनेका बहाना हा आइए यहा जानते है । जब हम किसी खास बीमारी के नाम से दावा या टीका का निर्माण कर उसे सीमित कर लेते है । तो वह भविष्य का द्वार बंद कर देता है | विज्ञान सार्वभौम ज्ञान है । उसका प्रयोग भविष्य है आनेवाले प्रायोजको में लाभकारी होना संभावित है । पूर्वा ज्ञान की नीव पर ही भारी अनुषंधा की पुस्ती की जाती है । डा . हैनिमैन ने चेचक की टीका इसपरभाव मिटाने कए लए यूजा नामक होमीयोपैथी दवा तैयार किया | चेचक की विविध प्रकार की दुस्प्रभव को मिटाने क ए लए वैरियोलिनक , सरसिकिया , पलसेलिका और सहलिसिया का प्रयोग कर संसार का भला किया । महान अध्यात्मिक संत अरबिंद पांडिचेरी लिखते है की संक्रामक रोगो के वैक्सीन को समय पर पुतः प्रभावित पाए जाते है , उनका दुरस्त प्रभाव मानव मे असाध्य एवं सर्जिकल रोग उत्पन्न करते है । डा . जे . एच . क्लार्क का कहना है उसे सार रूप मे ऐसा समझे की हमारी पूर्व की पतिया मे पाई गयी विशिष्ट चिकित्सक आज और आगे की हमारे सिस्टम और उसके होने वाले रोगो के निवारण मे अवश्य सफल होंगे | आज आवश्यक है की विश्व की सरकारे , अन्य चिकित्सक और खासकर होमीयोपैथी चिकित्सको को तो आपकी बिभूतियो वैभवो को भूलना नही चाहिए । उसे जनकल्याण के उतार कर मानव समाज की रक्षा का भार उठाना चाहिए | आज अमेरिका तथा वैसे धनकुबेरो द्वारा कोरोना के वैक्सीन निर्माण की सफल घोसना की बात कर रहे है । वे क्यू नही ” हिप्पोजेनियम ” पर भी विचार करले कही उन्हे भी न्यूटन के समय सेव गिरने जैसी या हैनिमैन के समक्ष सिल्कोना की छाल की करामात से होमीयोपैथी की उत्पत्ति के उसके सिद्धांतो की पुष्टि का प्रमाण मिला था , उन्हे भी सफलता हाथ लग जाए |