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मेरा मत

 हमारे देश और दुनियाँ भर में कोरोना पर चिन्तन और शोध – प्रयोग करने वाले चिकित्सा वैज्ञानिकों की कभी नहीं । इसमें समय सापेक्ष घटनाओं के उदित होने पर सम्बद्ध जानकारी जो दी जाती है , अनिवार्य अवश्य है । कोविद -19 के संबंध में संक्षेप में यही कहा जा सकता है , जिस बिन्दु पर ध्यान देकर जंग छिड़ा है , वह कोरोना वायरस द्वारा संक्रमण के प्रतिफल को महामारो स्वीकार कर हम आगे बढ़ रहे । रोग लक्षणों पर नहीं , कोरोना वाइरस के संक्रमण की रासायनिक जाँच में ( + ) तथा ( – ) ve पाये जाने वालों की विधानतः व्यवस्था करना तथा उसके परिणाम के आकड़े प्रस्तुत किया जाना नियमित रुप से चलता रहा । रोग लक्षणों को गौण माना गया तथा जाँच के ( + ) ve होने को प्राथमिकता दी गयी । विशेषज्ञों के अनुसार दवा जा प्रयोग किये जाते रह , वे अनुपयुक्त करार दिये जा चुके है । दवा की यथोचित खोज पर अबतक प्रयास नहीं , वैक्सिन पर निर्भरता जतायी जा रही । यह भी कहा जा रहा कि अबतक के प्रयास से आभास यही मिला कि विश्व एकमत नहीं । कुछ न कुछ भ्रान्ति अवश्य है हम वैचारिक विषय को छोड़कर प्रत्यक्ष पर ध्यान दें तो क्रमागत रुप से कोरोना के प्रकट होने की घटना को संक्रमण ही मानना और उस पर चिन्ता व्यक्त करना जो समस्या ला रहा वह परवर्ती लक्षण नये वाइरस की देन है या प्रथम संक्रमण का सिक्वल है ( परवर्ती स्वरुप ) या कुचिकित्सित रोग का दुष्परिणाम ? अगर नये प्रकार से संक्रमण है तो एक ही महामारी अगर सत्यतः ( + ) ve पाये गये पूर्व के रोगी पर दुबारा नही आना चाहिए । रोगी में पाया गया वायरस दुबारा नही आना चाहिए । क्या रोगी में पाया गया वायरस अगले लहर में वही या अन्य रुप में देखा गया अथवा उसके पूर्व के अवशिष्ट लक्षणों के अतिरिक्त कोइ लक्षण या टिशु चेन्ज देखे गये ? अगर ऐसा पाया गया या पाया जाये तो उसके लिए कोई अन्य वैक्सिन फिर खोजा जायेगा या उसकी चिकित्सा या अन्य उपचार होगा ? यह विषय विचारणीय है । ट्रायल एण्ड एटर नहीं ? होमियोपैथिक सिद्धान्त का यह आशय इस समस्या पर विचारने को बाध्य करता है कि ऐसा होता रहा तो उन क्रमिक परवर्ती समस्या के अन्त के लिए पूर्व के रोगी से लिये गये सैम्बुल से नोसोड दवा तैयार कर लिया जाये । होमियोपैथिक क्षेत्र में कोरोना का नोसोड जल्द तैयार करने पर विचार हो और परीक्षण कर उसे व्यवहार में लाया जाय । जैसे हिप्पोजेनियम मेलिन या फार्सिन है । यह मेरा मत है और सरकार सह वैज्ञानिक समुदाय से सविनय आग्रह भी ।

डा ० जी ० भक्त

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