भाग-4 राष्ट्रधर्म एवं राजभक्ति
भाग-4 राष्ट्रधर्म एवं राजभक्ति 73. जो समाज या राष्ट्र का नेतृत्व चाहते हैं वे सुशिक्षित सहित सेवा परायण , कर्मठ और नैतिक गुणों और मानवीय मूल्यों के प्रतिरुप हो ,…
भाग-4 राष्ट्रधर्म एवं राजभक्ति 73. जो समाज या राष्ट्र का नेतृत्व चाहते हैं वे सुशिक्षित सहित सेवा परायण , कर्मठ और नैतिक गुणों और मानवीय मूल्यों के प्रतिरुप हो ,…
भाग-3 राष्ट्रधर्म एवं राजभक्ति 54. जब शिक्षा , शिक्षालय और शिक्षार्थियों के परिवेश से मानवादर्श का लोप और कदाचार का उद्भव अनियंत्रित हो रहा है तो राज्यादर्श और राष्ट्रादर्श कहाँ…
भाग-2 राष्ट्रधर्म एवं राजभक्ति 30. राज धर्म का पलायन होने से राष्ट्र असुरक्षित होता है । 31. संसद और विधान मंडलों में अपनेक्षित गति विधि आवेश आक्रोश और हिंसक वर्ताव…
भाग-1 राष्ट्रधर्म एवं राजभक्ति 1. राजनयिकों , प्रशासनिक पदाधिकारियों , कर्मचारियों और लोक सेवकों का दायित्व राज धर्म हैं जबकि राजभक्ति में नागरिकों का दायित्व जुड़ता है । 2. मूलतः…
भाग-3 राष्ट्रीय एवं वैश्विक आदर्श 77. आंतरिक और बाहरी आतंकों से भी घिरा है । सत्ता में अस्थिरता व्याप्त है । राजनैतिक दलों ने अपना आदर्श और दायित्त्व खोया है…
भाग-2 राष्ट्रीय एवं वैश्विक आदर्श 36. जहाँ की हवा में जीवन के स्पन्दन है । 37. जहाँ की नदियों में जागरण के गीत है । 38. जहाँ का प्रमात सूर्य…
भाग-1 राष्ट्रीय एवं वैश्विक आदर्श 1. आज मानव की सिर्फ स्थानीय ग्रामीण या सामाजिक भूमिका ही नहीं है , बल्कि वह उससे भी आगे पाँव बढ़ा चुका है । 2.…