भाग-1 राष्ट्रधर्म एवं राजभक्ति
भाग-1 राष्ट्रधर्म एवं राजभक्ति 1. राजनयिकों , प्रशासनिक पदाधिकारियों , कर्मचारियों और लोक सेवकों का दायित्व राज धर्म हैं जबकि राजभक्ति में नागरिकों का दायित्व जुड़ता है । 2. मूलतः…
भाग-1 राष्ट्रधर्म एवं राजभक्ति 1. राजनयिकों , प्रशासनिक पदाधिकारियों , कर्मचारियों और लोक सेवकों का दायित्व राज धर्म हैं जबकि राजभक्ति में नागरिकों का दायित्व जुड़ता है । 2. मूलतः…
भाग-3 राष्ट्रीय एवं वैश्विक आदर्श 77. आंतरिक और बाहरी आतंकों से भी घिरा है । सत्ता में अस्थिरता व्याप्त है । राजनैतिक दलों ने अपना आदर्श और दायित्त्व खोया है…
भाग-2 राष्ट्रीय एवं वैश्विक आदर्श 36. जहाँ की हवा में जीवन के स्पन्दन है । 37. जहाँ की नदियों में जागरण के गीत है । 38. जहाँ का प्रमात सूर्य…
भाग-1 राष्ट्रीय एवं वैश्विक आदर्श 1. आज मानव की सिर्फ स्थानीय ग्रामीण या सामाजिक भूमिका ही नहीं है , बल्कि वह उससे भी आगे पाँव बढ़ा चुका है । 2.…
भाग-4 मनुष्य का सामाजिक जीवनादर्श 77. यह सेवा भक्ति हमारी अपनी नही । मैंकाले महोदय की शिक्षा नीति का प्रभाव है जो गुलानी समाप्ति के बाद भी गयी नहीं ।…
भाग-3 मनुष्य का सामाजिक जीवनादर्श 57. कहाँ तक गिनाएँ , समाज को आर्थिक रुप से उत्क्रमित करने का कार्य अपने देश में जी तोड़ चल रहा है । लीची के…
भाग-2 मनुष्य का सामाजिक जीवनादर्श 35. अगर ठीक से हम सभी अपनी संस्कृति के रक्षा करें , उस सांस्कृतिक घरोहर को समझे तो हम भी कुरुक्षेत्र को जीत सकते हैं…