Fri. Apr 26th, 2024

त्रिताप का परिताप
 कोरोना का उत्पात

 एकस्य दुखस्य न यावदन्तम ,
 गच्च्छामयहां पारमिवानवस्य |
 तावितियम समुपस्थीतम म्मे ,
 छिदेश्वघ्या बाहुली भवंती | |

 भाव : जबतक एक दुख की समाप्ति न हो पाती , जबतक उसके प्रभाव से मुक्ति नही मिल जाती , तबतक दूसरी विप्पति आकर खड़ी हो जाती है । इससे अनेको प्रकार के व्यवधान सामने आते है |
 विपत्ति अकेले नही आती | कष्ट का समय सहनशीलता की ज़रूरत पड़ती है । . . . . . . .. . . . . . और आज की इस गंभीर परिस्थिति में क्या – क्या न आपतित हो सकता , कहना कठिन है । न संक्रमण रुक रहा है न निदान सूझ रहा है | कठिनाइया बढ़ती जा रही है | कानून | का शिकंजा भी कसना पर रहा है | व्यवस्था मे नये – नये प्रयास जारी हो तथापि अपर्याप्त है । देश बड़ा है | जनसंख्या अपार , गरीबी और बेरोज़गारी की मार | संभाल पाना भी कठिन लगता है | धीरज की भी एक हद होती है , लेकिन उसके अतिरिक्त कोई उपाय दिखती नही | रोग और संक्रामक रोग के अंतर है | उसमे मे भी नई प्रजाति की | नाम सुनते ही चिकित्सक सकते मे पड़े । आज भी वे इस लड़ाई में सक्रिय नही | आज टी . वी . पर उसके संचालक बोल पड़े | ” मदद तो मदद मात्र ही – न है ” ऐसे सत्य का उद्घाटन सुनने वालों के लिए धीरज को तोड़ने वाला तथ्य है । तो देश कह सकता है की प्रयास पूर्ण विकल्प भी तो नहीं | रोग है तो इलाज चाहिए | महामारी है तो बचाव का उपचार कारगर होना चाहिए | कानूनी शिकंजा मात्र भी | कोई समाधान नहीं ; संसाधन की अपूरणियता मे भय हृदय मे हताशा लाकर जीवन की प्रत्याशा को क्षीण कर सकता है । ऐसी जगह हमारा प्रयास जो अबतक धरातल पर उतारने में कमी दिख रही है | ऊपर का सहयोग और समर्थन नही मिल पाने एवम् विभाग के सक्रिय नही होने से |
 खेद है की 28 . 03 . 2020 को माननीय प्रधानमंत्री जी ने आयुष से अपना भाव व्यक्त किए किंतु 29 . 03 . 2020 के समाचार पत्रों में न छपा और न आयुष के शीर्ष अधिकारी की ओर से कुछ सकारात्मक पहल ही सामने आया । जो कुछ हम होमियो पैथिक चिकित्सक जीव की शक्ति को महामारी के विरुद्ध शक्ति जागृत करने का प्रयास करना प्रारंभ कर दिया है उसके ध्यानकर्षण के अभाव में कोई सार्थक स्वरूप न ले पा रहा – यह चिंतनीय है | आज 30 मार्च को ऐसा निर्देश पुनः सुना गया है की आयुष को प्रधानमंत्री जी ने निर्देश दिया है । इससे हमें बाल मिला है | आशा करते हैं की देश के आयुष के | घटक प्रणाली खासकर होमियो पैथ आज एकता के साथ सामने आकर हमें साथ देकर कृतार्थ करेंगे | मेरा सादर आग्रह होगा देश के हर क्षेत्र में कार्यरत होम्योपैथ इस विषम | अवसर पर संगठित होकर इस विश्व युद्ध के सफल सिपाही बनने का व्रत करें | हमारे पास देश के ऐसे दो विभूति है । प्रथम आयुर्वेद और द्वितीय होम्योपैथी ।
आयुर्वेद के प्रहरी रामदेव जी बने जी जान लगाये हए है | होम्योपैथी आज विश्व की | स्थायी आरोग्य दिलाने वाली पद्धति है जो हर तरह से निरापद सिद्ध हो चुकी है | | उसमे कोरोना से भी लड़ने के सुत्र समाहित हैं | हमारे चिकित्सक बंधुओ में सरकारी नियोजन प्राप्त भी है और हमारे होम्योपैथ आयुष के तहत पदाधिकारी भी है । ऐसी संभावना बनती है की उनका नेतृत्व पाकर हम सफल और कल्यानप्रद सिद्ध हो । धरती पर तीन प्रधान व्याधियाँ हैं , जिनकी अग्नि में हम तपते रहते है | दैहिक रोग , दैविक रोग और प्राकृतिक विपदाएँ । ये तीनो प्रकार के ताप आज हमपर प्रहार कर रहे हैं । इसी बीच कोरोना का कहर ! एक सकारात्मक विमर्श की आवश्यकता हैं | स्वास्थ्य के क्षेत्र में होम्योपैथी का सैधन्तिक लक्ष्य महान है । उस लक्ष्य की सिधि का मूल मन्त्र हनिमैन ने दिया | हनीमैन महोदय को उनके जीवन मे इसके लिए कई चुनौतियाँ मिली | कहा गया की तुम्हारी होम्योपैथी मुर्दा है | हनीमैन ने कहा – ” अगर मेरी होम्योपैथी मुर्दा है , तो इसे गहराई में गाड़ दो | अगर इसमें जीवन होगा तो इसकी कब्र पर जो घास जमेगी वह आकाश को च्छएगी | ” आज हनीमैन स्वर्ग मे उदास बैठे चिंतित हैं । क्यूँ ? इसलिए की उनकी जगाई हुई ज्योति धूमिल लग रही है | वे अपने भक्तो को भूलते हुए पा रहे है उस दीपक मे ज्योति जलाने में | मैं उन्हें याद | दिलाना चाहता है उनके आत्मविश्वास को | भाइयों ! यह समय है जागने का | निद्रा | त्यागने का | कोरोना के कहर को वह ज़हर ( विष ) चाहिए , जिससे उसका शकन शीघ्र | हों | होम्योपैथ जगो ! विषस्या विश्मोवधम का रहस्य समझो | इस संक्रमण से विश्व को बचाओ ताकि | मानवता की रक्षा संभव हो | शायद आज इस प्रतीक्षा की घड़ी में आप ही के नेतृत्व की प्रत्यसा दिखती हैं ।

 विनयप्रार्थी
 डा . जी . भक्त
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