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 रोग बीज और उनके रहस्य

 ( My stry of Miasms )

 जिस प्रकार आयुर्वेद ( Indian Medicine ) में तीन प्रकार के दोष गिनाये गये तथा उन्हें ही असंख्य प्रकार के रोगों के कारक या कारण बतलायें गये , उसी प्रकार डा ० हैनिमैन महोदय ने अपनी होमियोपैथिक पद्धति में सोरा सिफलिस एवं साइकोसिस तीन दोष बतलाये । ये तीनों दोष अपनी प्रवृति और प्रभावों से पृथक अपनी – अपनी पहचान प्रकट करते है , जिन्हें हम इस प्रकार जान सकते है:-

 ( 1 ) सोरा ( PSORA ) या सोरिक मियाज्म : शरीर के अवयवों में ऐसे क्रियात्मक विकार जो सामान्य तटा लक्षणों में ही प्रकट होते या मनोभाव के रुप में देखे जाते है । स्थूल लक्षण नही दीखते ।

( 2 ) सिफलिस ( Syphlis ) या गरमी रोग जो शरीर के तन्तुओं में विकार ( Degeneration ) जैसे धाव , पीव आना आदि ।

( 3 ) साइकोसिस : ( Sycosis ) जहाँ शरीर में अतिरिक्त तन्तु बनते या नूतन रुप में तन्तु को बाहर की ओर विकास ( Out growth ) देखा जाता है । घट्ट , ( Corns ) उभार ( Excressence ) ऐला ( Warts ) तथा अर्बुद ( Tumour ) इत्यादि ।

 इन उपोक्त पहचानों से हम रोगी की प्रकृति जानकर उनके आरोग्य के संबंध में आरोग्य में बाधा आने पर उनके दोष निवारक दवा का प्रयोग कर उसे साध्य बनाते है , अर्थात दवा उनपर क्रिया करना प्रारंभ कर देती है अथवा जो छिपा हुआ लक्षण , जिसे कभी दवाया गया होता है , प्रकट होकर दवा के चुनाव में मदद करते हैं । ऐसे दोष निवारकों में प्रमुख ( King of Antimiasmatic Remedies )

 ( 1 ) सोरा नाशक ( Psorinum , Sulphur )

 ( 2 ) सिफलिश के लिए ( Syphlinum , meresol )

 ( 3 ) एन्टी साइकोटिक ( Thuja , Medorhinum )

 इनमें Psorinum ( सोरिनम ) सिफलिनम ( Syphlinum ) तथा मेडोरिनम ( Medorhinum ) नोसोड जाति ( Disease product ) दवायें हैं ।

 ये दोष मनुष्य में एकल ( यक्ति में सिर्फ एक ही सोरा दोष या अन्य दोष प्रभावी हो सकते हैं किन्तु सोरा दोष अन्य दोषों से मिलकर यौगिक ( Compound Miasm ) दोष जैसे Psora + Syphlis : – Tuberculosis ( सोरा सिफलिस से जुड़कर एक टयूवरक्यलर दोष ( यक्ष्मा ) पैदा करता है । उसी तरह रोगी विशेष में यौगिक दोष सोरा + साइकोसिस सिफलिस + साइकोसिस अथवा Psora + Syphis + Sycosis त्रिदोष ( Complix mism ) पाये जाते है । स्मरणीय है कि रोगी में तीनों दोषों के होते हुए एक समय में प्रायः एक ही दोष प्रभावी होते ( Dominent ) है , अन्य गौण , छिप रुप ( Laten + Stage ) में होते है । ऐसे रोगियों में जो दोष अपने क्रमानुसार शरीर को प्रभावित किये होते है , उनमें सबसे अंतिम पहले शरीर से जाता है और जो सबसे पुराना होता है वह सबसे अन्त में चिकित्सा के क्रम में रोगी में domination of crtoain miasm को भली प्रकार तय करके ही antimiasmatic दवा का व्यवहार करना पड़ता है । रोगों , खासकर पुराने रोगों की साध्यता असाध्यता एवं आरोग्यता का रहस्य ( Domination of miasm ) का समझना ही महत्वपूर्ण है ।

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