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सृष्टि का सार ” ख “

सृष्टि का सार " ख " Dr. G. Bhakta article

 सृष्टि का सार ‘ क ‘ में पृथ्वी पर मानव द्वारा विकास के श्रेय उपजे अहंकार और प्रवृत्तियों में बदलाव के बुरे परिणामों पर चिन्तन जब समष्ठि को सोच में डाल दिया तब अवश्य ही मानव को अपनी सोच को सकारात्मक दिशा देनी होगी । मानव को सम्भावित विनाश से उबारने में पुनः सशक्त कदम उठाना होगा ।
 1. ज्ञान को मर्यादा देनी होगी ।
 2. सोच को सकारात्मक दिशा देनी पड़ेगी ।
 3. कर्म की शुचिता पर सतत ध्यान रखना होगा ।
 4. सृष्टि की विराटता में ही सृष्टिकर्ता को समाहित मान कर उनमें श्रद्धा भाव निभाना होगा । उनकी प्रार्थना में उनका गुणगान ही उनका दर्शन मानकर चलना पड़ेगा ।
 5. प्रकृति की समरसता को परख कर उनमें श्रद्धा भाव रखते हुए हर कार्य और उनके प्रति व्यवहार करना होगा ।
 6. प्रकृति के विपरीत कोई कर्म सृष्टि पर संकट ला सकता है ।
 7. मानव सतत सृष्टि के संरक्षण का ध्यान रखते हुए अपने कर्म और धर्म का पालन करें ।
 8. शरीर को संसाधन और अपनी आत्मा को ईश्वर मानकर ज्ञान को ही सम्बल समझे ।
 9. मन में पवित्रता , धारण करें । बुद्धि पूर्वक निर्णय लें । विवेक के साथ कार्य करें ।
 10 , अपने आप में संतुष्टि भाव बरतें ।
 11. आपके कर्म में सतत सृष्टि का कल्याण निहित हो ।
 12. प्रकृति के संसाधनों का समुचित उपयोग हो । ताकि उसका भण्डार सदा अक्षुण्ण बना रहे ।
 13. सबसे प्रथम शरीर की शुचिता , स्वस्थता और कर्म में रुचि के साथ जीवन को आगे बढ़ायें ।
 14 , कर्म के प्रति हमारा ख्याल पहले परिवार फिर समाज ( या राष्ट्र ) के साथ निज का उत्थान चाहे इससे परिवार , सन्तुष्ट और समरस रहेगा । देश समृद्ध रहेगा । स्वयं को संतुष्टि और शान्ति मिलेगी ।
 15. आपके चिनतन में समष्टि का कल्याण ही विषय बने ।
 16 , दूसरों का अहित , यहाँ तक कि दुश्मनों के प्रति कठोर न बनें । इससे आपको अपने जीवन में सबका साथ मिलेगा ।
 17. दुनियाँ में बुरा करने वाले अपना ही मार्ग अवरुद्ध करते हैं ।
 18 , विधों – बाधाओं से सीख ग्रहण करें , उनसे निबटने का प्रयत्न हो , तो आपको अधिक सफलता हाथ लगेगी , प्रेरणा प्राप्त होगी । मार्ग प्रशस्त होगा ।
 19 , जो धन , ऐश्वर्य और भोग के पीछे पड़ते हैं , उन्हीं को पतन का प्रायश्चित करना पड़ता हैं ।
 20. निरस्पृह जनों के कोई दुश्मन नहीं होते । ईश्वर उसकी रक्षा करते हैं ।
 21 , ऐसा मन में कभी न लायें कि जमाना खराब आ गया है । सभी ऐसा ही करते हैं । हम अकेले कैसे भला बन पायेंगे , यह भूल है ।
 22. इतना ख्याल अवश्य रखें कि हम अपने साथ एक दूसरे का भी कल्याण करते चले । यही विश्व प्रेम का सही तरीका है ।
 23. आप अपने पर आश्रित जनों पर पहले सोचे , फिर बाद में अपने पर । ऐसा करने पर आप निर्भय जीवन जी पायेंगे ।
 24. इस पर कभी बल न दें कि भला करने वाले पर भी विपत्ति आती है । एक बार नकारात्मक सोच मन में लाने पर पाप में प्रवृति का प्रारंभ हो जाता है ।
 25 , जीवन में कर्म , धर्म , भोग और मोक्ष की ही चर्चा चलती रहती हैं । एक दूसरा चिन्तन है , जो अपने प्रति ही नही , समस्त सृष्टि के प्रति भी लागू है । वह है भक्ति भाव । यह हर नागरिक में होना चाहिए । यह कठिन नहीं , बहुत सरल हैं । स्वभाव स सरल होना मन में किसी के प्रति कुटिलता न बसे , जितना अर्जित करें उसमें ही सन्तुष्ट रहे । सादा जीवन जीयें ।
 यह भाव हर व्यक्ति को सुयश देने वाला तथा सबके हृदय को जीतने वाला है । जहाँ संसार को आप जीत लेते हैं तो भगवान कोई इस जगत से अलग कही मिलने वाले है ?

डा ० जी ० भक्त

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