अबतक के कोरोना संघर्ष के परिणाम जिन समस्याओं को प्रस्तुत कर रहे उनके प्रभाव के निदान पर होमियोपैथी के सिद्धान्त युक्ति युक्त हैं ।
डा ० जी ० भक्त
मैं हठात ऐसा नही विचार रखता कि उपरोक्त भाव को स्वीकार किया जाय किन्तु इसे ध्यान में रखकर आवश्यक समझें तो पहले इस पर विमर्श , फिर प्रयोग करके देख लिया जाय ।
विषय यहाँ पर उठता है कि विश्व के स्वास्थ्य सेवा समुदाय इस गम्भीर संक्रमण से उमरते , फिर प्रभावित होते , इसके परवर्ती प्रभावों के शिकार पाये जाते है और यह प्रश्न सामने आ रहे है कि अगला ज्यादा गम्भीर हो सकता है । इस पर तो सोचना स्वास्थ्य विभाग का ही कर्त्तव्य ह और चिकित्सा शास्त्री ही इस पर अपने ज्ञान वैभव के आधार पर विचार दे सकते हैं ।
डा ० एडवर्ड जेनर ने चेचक ( स्मॉल पौक्स ) का वैक्सिन देकर विश्व में वैकसिन के जनक माने गये । इसमें उनकी प्रतिठा बढ़ी । यह विषय 1696 ई ० की है । उस बड़ी सफलता में भी एक दोष निकला जो वैक्सिननोसिस कहलाया । अर्थात वैक्सिन का दूरस्थ प्रभाव एक नवीन प्रकार के रोग को जन्म दिया । हैनिमैन 1810 ई ० में होमियोपैथी को धरातल पर उतारे । उनकी उपलब्धि में खूबी यह पायी गयी कि रोग का प्रशमन नही होता जैसा एलोपैथिक दवा से होता है । इस कारण है कि उस दवा में औषधीय पदार्थ का सूक्ष्म भाग रोगी के शरीर में स्थान पाकर अपना दूरस्थ प्रभाव उत्पन्न करता है । होमियोपैथी में अपना दूरस्थ प्रभाव मेटेरियल रुप में न होकर डायनेमिक रुप दिया गया होता है जो शरीर में अवशिष्ट रह पाने की गुंजाइश नही रखती और साइड इफेक्ट नही डालती ।
दूसरा एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है ड्रग प्रूविग का । एलोपैथ अबतक छोटे जीवों पर दवा का परीक्षण करते है जो अपने अन्दर रोग के सारे लक्षणों को स्पष्ट नहीं कर पाते , बाहर शरीर पर दीखने वाले चिन्ह ( Sign ) पाते है किन्तु रुग्न जीव वाणी ( भाषा ) में व्यक्त करने में सक्षम न होने से अन्दर पायी जाने वालो सम्वेदना का स्पष्ट चित्रण नहीं दे पाता , इस हेतु वह अपूर्ण है । जबकि होमियोपैथिक दवा प्रारंभ से ही मानव पर परीक्षित है । वह सब्जेक्टिव और आब्जेक्टिव दोनों ही प्रकार के लक्षण स्पष्ट कर पाते हैं । मानसिक लक्षण भी व्यक्त किया जाता है । इस हेतु यह पूण है । अथवा अपेक्षाकृत सुधरा हुआ , अधिक वैज्ञानिक और गुणकारी , मानव के लिए ज्यादा हितकारी है । एलोपैथ
अपने को होमियोपैथी को पूर्णतः अवैज्ञानिक मानते है । एलोपैथ जब चेचक के अलावा अन्य महामारी हैनिमैन के काल मे आये तो उनपर भी वैक्सिन के आविष्कार की बात उठी । व्यक्तिगत रुप सेव अपने को उस विधान से गुजरने में असमर्थ पाये , तो चुप रह गये । जब इसके लिए उन्होंने नोसोड दवा ( संक्रमित रोगी के सिरम , स्त्राव , आदि से दवा का निर्माण कर बिना मेटेरियल अस्त्विका डाइनेमिक स्वरुप में डाइल्यूसन पोटेन्टाइज कर उसे ही वैक्सिन के रुप में तथा आगे उसके दुष्प्रभाव को समाप्त करने के लिए नोसोड का प्रयोग कर महामारियों से बचाव और आरोग्य दिलाने का काम सफलता पूर्व करते हुए एक कदम आगे ( Fore Runner ) के रुप में माने गये ।
आज हनिमैन का अनुसंधान समस्याओं की दृष्टि से प्रासंगिक दिख रहा है । इस पर विवाद नहीं है । क्योंकि यह आरोग्य दिलाकर सत्यापित कर रखा है । समय की मांग है , उसे पुनः सत्यापित कर लिया जाय । सोच और शोध मानस के कार्य है । हनिमैन मानव रहे । मानव के हितैषी बने । क्लासिकल होमियोपैथी अपने आप में आदर्श सिद्धान्तों , आरोग्यकारी एवं निरापद चिकित्सा के लिए विख्यात होमियोपैथी आज विश्व में दूसरी चिकित्सा पद्धति के रुप में सेवारत है । कोरोना के जंग में जब सबका साथ अपेक्षित था तो होमियोपैथी को संग लेकर चलना भी अपेक्षित था । इसकी उपादेयता और विशिष्टता का प्रमाण उनके ग्रंथों , पत्रिकाओं , सेमिनारों महासम्मेलनों मे प्रस्तुत चिकित्सा तथ्यों से जाना जा सकता है । भारत में H.M.A.I , L.H.M.I. के विशेषज्ञों के साथ , सवाद , विमर्श एवं CCRH के साथ मिलकर शोध एवं प्रयोग से प्रमाणित किया जा सकता है । इसकी सेवायें एवं सम्भावनाएँ ही इसे आपारोग्यता की दृष्टि से तथा किफायती खर्च , कम समय में , समूल आरोग्य और सम्पूर्ण स्वस्थता का राज अपने अन्दर लिए विश्व में जाना जा रहा एक स्थापित विज्ञान है जिसे हम नेचर क्योर की संज्ञा देते है । हीलिंग आर्ट से सम्मानित करते हैं ।
यह रहीं हमारी पैथी की आज तक की पहचान । हमें इससे भी आगे बढ़ने का लक्ष्य लेकर चलना है ।
आरोग्य और स्वास्थ्य पर आने वाला समय हमारा है । वर्तमान प्रधानमंत्री महोदय को सारी स्पष्ट जानकारी से अवगत कर चुका हूँ । उचित निर्देश की प्रतिक्षा है ।