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 इम्यूनिटी एवं होमियोपैथी

  डा ० जी ० भक्त

 हम आर्थिक समृद्धि , उपयोगिता के पर्याप्त साधनों की उपलब्धता , सभ्यता एवं संस्कृति का विकास , सुख सुविधाएँ और आराम के साथ व्यसन एवं मनमाना जीवन वसर करना ही विकास मानते हैं । हमारे विकास का एक मानक स्वास्थ्य भी है , लेकिन हम यर्थाथ रुप में स्वास्थ्य के प्रति जागरुक नहीं पाये जाते । आचार – व्यवहार , खाद्य पदार्थ की शुद्धता की जगह मिलावट एवं गुणवत्ता की कमी से इम्युनिटी घटती है । यह विषय सीधे स्वीकार कर लेने मात्र से काम नहीं चलता । कोई अगर किसी प्रकार का प्रोडक्ट दवा या खाद्य सामग्री बाजार में इम्यूनिटी बढ़ाने के नाम पर व्यवसाय करता है तो लक्ष्य की पूर्ति हो जायेगी ? यदि कोई रुग्न व्यक्ति अपनी चिकित्सा व्यवस्थित ढंग से नहीं करा पाता तो दिनानुदिन उसका स्वास्थ्य बिगड़गा । नये – नये कम्पलीकेशन्स आते जायेंगे , उस अवस्था में कोई इम्युनिटी प्रोमोटर साधन उसे रोग निवारक क्षमता लौटा नही सकता । इम्यूनिटी शब्द का हिन्दी अर्थ रोग प्रतिषेधक क्षमता बताया जाता है । वैसे लोग जिसके शरीर में यह क्षमता लघुतर ( कम ) पायी जाती है वैसे लोग जल्दी रोग से ग्रसित होते पाये जाते है । होमियोपैथ उसका नाम Vital Force ( जीवनी शक्ति ) कहते है । भाव एक हो है । संतुलित आहार , आचार संयम , नीरोगता और स्वस्थ वातावरण ही जीवनी शक्ति की सुदृढ़ता का साधन माना जाता है ।

 कोई हाल में चिकित्सा से लौटा हुआ महामारी का रोगी तुरंत दुहराता है तो निगेटिव रुप में लौटे हुए को उसका दूसरा प्रकोप मानकर चलना भ्रमात्मक है । उसके पास पहले से भी कोई पुरातन अचित्सित या कुचिकित्सित रोग का प्रभाव उसे प्रभावित करता माना जा सकता है । उसकी चिकित्सा उसका पूर्व इतिहास एव चिकित्सा का विधान देख – सुन और समझकर , विविध जाँच कर करनी चाहिए । ऐसी समस्या होमियोपैथिक चिकित्सा से स्वस्थ होकर लौटने पर नहीं होती । अगर होता है तो पूर्व के इतिहास के अनुसार दवा देने से आरोग्य होगा । अथवा , जिस दवा से वह स्वस्थता पा चुका था , उसके बाद की स्थिति में उसकी ऊँची शक्ति , कोलैटरल मेडिसीन , कम्पलीमेन्टो मेडिसीन , या एन्टी मियाज्मेटिक मेडीसिन या उसी महामारी का नासोड मात्र के व्यवहार से स्वस्थ होगा एवं भविष्य में उसका पुनराक्रमण नहीं होगा ।

 बचपन में कुकुरखाँसी भी महामारी की तरह ही फैलती और परेशान करती है । अगर उसके जीवन में दमा का लक्षण आता है और किसी भी दवा से लाभ नहीं मिलता तो उसे कार्वोवेज नामक दवा ही ठीक कर पायेगी । अगर किसी को इन्डेमिक ऑटुमनल डिसेन्ट्री ( ग्रीष्म ऋतु की आमशूल ) को चिकित्सा से दवा दी जाती है तो उसे कोलचिकम ही ठीक कर पायेगा । उसी प्रकार जिसे बचपन में या पूर्व में बार – बार मलेरिया ज्वर हुआ है उसे अन्त में टी ० वी ० परेशान करे तो अन्य दवाएँ नाकामयाव होने पर मलेरिया आफिसिनेलिस से ठीक किया जायेगा ।

 आप महामारी की पहचान , वायरल , वैक्ट्रियल , कोक्कल आदि नामों से करते और उसकी चिकित्सा पाते है । उसकी वैक्सिन या स्पेसिफिक दवा का प्रयोग करते है । होमियोपैथ उसे पूरी तरह लक्षणों और पूर्व के इतिहास पारिवारिक इतिहास , दुर्घटनाएँ आदि को कारण रुप स्वीकार कर चलते है । जीवनी शक्ति और शरीर को शताने वाले बाहरी तत्त्व ( Morbid agent ) का सामान्जस्य , विरोध , प्रतिक्रिया ही रोग और उसकी चिकित्सा के बीच कड़ी बनते है । कार्य कारण का संबंध हो या साहचर्च्य से उत्पन्न हो , समता का सिद्धान्त ही प्राकृत सत्य है । यह भी सत्य है कि दवाएँ जीवनी शक्ति को जगाती है । स्वस्थ शरीर ( मन और शरीर दोनों से सामान्जस्य रखने वाला ) कभी भी रुग्न नहीं हो सकता ।

 अचिकित्सित या कुचिकित्सित रोगों के प्रभाव जीवन में कभी भी उसी के रोग बीज से बनी दवा ( नोसोड ) के प्रयोग हुए बिना स्वस्थ होना , तथा उसी कारण विशेष से जुड़ी दवा से ही सम्भव है । चोट लगना , कुचल जाना मोच आना , क्रैक हड्डी का गम्भीर चोट किन्तु काई क्षत नही होना किन्तु जीवन के किसी भी उम्र में कोई रोग शारीरिक या मानसिक कोई हो , वही कारण उसका निदान बनेगा । यह सिद्ध सत्य है ।

 दर्द के सैकड़ों कारण और रुप है , अंग उन से प्रभावित होता है । दर्द की दवा से नर्व की उत्तेजना शान्त की जा सकती है । क्षणिक लाभ हो सकता है । आरोग्य नहीं हो सकता । जब तक उसका स्थूल कारण या मूल कारण पर आधारित दवा का प्रयोग न हो । हैनिमैन महोदय ने मानव पर दवा का मरीक्षण कर जो लक्षण जुटा पाये वह एक महत्त्वपूर्ण तरीका बना आरोग्य स्थापित करने का ।

 रोग लक्षणों में दवा का स्वरुप अंकित है जो उस दवा विशेष के परीक्षण से पूवर ( परीक्षक ) द्वारा व्यक्त भाषा में निहित है जो मेटेरिया मेडिका में अंकित ह । उसकी तुलना लक्षण समष्टि के साथ बैठाने पर ही आरोग्य का मार्ग तैयार होता है रोग शक्ति और जीवनी शक्ति दोनों ही अदृश्य ( इम्मेटेरियल ) अभौतिक उर्जा है अतः दवा भी डायनेमिक , सूक्षम और निर्धारित क्षमता वाली होनी चाहिए । ऐसा सूक्ष्म विज्ञान होमियोपैथी ही है ।

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