Sat. Dec 21st, 2024

चिंतन का चमत्कार

डा . जी . भक्त

 आवश्यकता आविष्कार की जननी कही गयी है | दुर्दिन जब आता है तो बहुत कुछ बना हुआ भी बिगड़ जाता है किंतु जाते – जाते एक चिंतन को जन्म दे जाता है | आपातकाल में हम कष्ट सहते हुए निदान ढूंढते हैं | आदि काल में खोज होती रहती थी |
 आज भी | सवरिन घटनाएँ आकर खोज का चिंतन जगाती हैं । हम इस्दीन खोजों पर खोज करते रहे हैं । आज हमारे पास ज्ञान सामग्री की कमी नहीं , भंडार है । हमें उनमें से ढूंढ निकलना है । आज बड़ी भूल हो रही है नवीन पीढ़ी से | ये अपनी पुरातन निधि के प्रति उदासीन हैं | कठिनाई की हालत में धीरज , संयम के साथ चिंतन भी भुला देते हैं । – – – – – – – – – – – – – – – – – – लेकिन अंततोगत्वा पुराना चावल ही पथ्य बनता है | इस वैश्विक विभीषिका में हम चिंतित अवश्य हैं । भयभीत भी हैं | निदान ढूँढ रहे हैं । कुछ न कुछ अद्यतन जानकारियों से कारगर समझ उसका उपयोग कर ही रहे हैं । कुछ तो सफल भी हो रहे हैं ।
 संक्रमण की रोक थाम के जो विधान हो रहे हैं उसमे लगे चिकित्सक , कॉमपाउंडर , सेवाकर्मी भी कोरोना के प्रति भयभीत , जागृत और सचेत हैं । उन्हें सुरक्षित रखने के लिए हाइड्रवोक्सिलोरिन दिया जा रहा है । दवा खाने वालों की उम सीमा 15 वर्षीय रखी जा रही है | बचाव की दृष्टि से मास इम्यूनिटी के लिए बी . सी . जी . का टीका सोचा जा रहा | इस सोच ( चिंतन ) में विज्ञान छिपा है । यह अनुभव जन्य विषय है । कोरोना संक्रामक रोग है । मारात्मक ( प्राणघातक ) है | अल्पकालीन मृत्यु ट्युबर्कलर दोष है | उस दोष के निवारणार्थ जो विधान किया जाता है वह वैसी बीमारी पर नियंत्रणात्मक प्रभाव डालता है । होमियोपैथी में लीन बुनियादी दोष ( रोग बीज – miasm ) माना गया है । वे दोष सोरा , सिफलिस एवं साइकोसिस नाम से जाने जाते हैं । महामारी ( संक्रामक रोग ) सोरा दोष वालों को प्रभावित करता है । रोगी की प्रकृति जानने के लिए हम सामान्यतया सूखे चर्मरोग के इतिहास या दबाए गये चर्मरोग के इतिहास की जानकारी होने पर दो दवाएं सामने आती हैं | सल्फर और सोरिनम | सल्फर सोरा दोषनाशक होने से जीव की शक्ति को जागृत करता है | सोरिन स्वयं चर्मरोग से प्राप्त ( निर्मित ) दवा है । अगर हमारे क्षेत्र में कोरोना के एक या एक से अधिक रोगी संक्रमित होते पाए जाएँ तो हम होमियोपैथो को ट्यूबर्कुलर दवाएं सहायक बनेंगी | प्रतिरोधीक्षमता बढ़ने के लिए तथा चिकित्सा क्षेत्र में भी सिरिलियम की तरह जिसे हम जीनियस एपिडेमिक्स कहते हैं , वह दवा ” हिप्पोजेनियम ” होगी । हिप्पोजेनियम संबंधित विशिष्ट उसी साइट पर पूर्व में दी जा चुकी है | अन्य दवाएं भी वहाँ पर लिखित हैं प्रयोग विधान के साथ | कुछ अन्य प्रचलन में आने वाली दवाएं निम्नलिखित हैं जिनपर विशेष ध्यान दिया जा सकता है | कोरोना के प्रकोप से बचे रोगियों पर भविष्य में दुष्प्रभावों पर व्यापक दृष्टि डालनी पड़ेगी | ऐसा समय कुछ ही दिनों के बाद आएगा जब मात्र होमेयोपैथी ही उसे पूर्ण आरोग्यता दिला पाएगी | इस हेतु भी हमारे होमेयोपैथ भाइयों को तैयार होकर उतरना है | आप सभी मेरे वेबसाइट पर ( myxitiz.com ) google ‘ s पर सर्च कर पूरा लिटरेचर पा सकते हैं । इसके पाठक ( प्रयोगकर्ता ) कोरोना के भीषण विध्वंसकारी वैश्विक समस्या पर अगर संवेदित हैं तो उन्हें इसे व्यापक बनाने का कष्ट कर इस अभियान में सहयोगी बन सकते हैं । मेरे विचार से आयुष की ओर से भी इस लड़ाई में सफल भूमिका निभाने की हर प्रक्रिया पर खोज , शोध , नवाचारी आनुसांगिक उपचार चिकित्सा और उनके दूरस्थ प्रभावों की दिशा में निवारणात्मक विधान जुटा पाएँ तो मानवता की सबसे बड़ी सेवा एवं उन्हें इसका श्रेय मिल पाएगा | मैं भी इसके लिए प्रतिबद्ध होकर प्रेरित कर रहा हूँ । एकजुटता के लिए उर्जा भरने का कार्य भी आवश्यक है । संकट में सहायक बनना मानव का महान कर्तव्य बनता है ।

 भवदीय
 डा . जी . भक्त

 नोट : – – दवाओं के नाम : एकोनाइट , इपीकाक , सॅस्मिटार्ट , एंटिमार्स , जेल्स , आर्स आयोद , कम्फोर , आलियाम्सीपा , बयोनिमा , रस्तब्स सामान्य रोगों में ; जबकि गले की गड़बड़ी रहे तो कलिस्यूर , कालियामोद , वैरयकर्प , कलकेटिया आयोद , थाविन , कोकास कैबतरट , एजता , मिरओ , फॉस्फरस , वैसिलोनम , काली वाइ , आर्सेनिक , आमों कार्ब , एबियनी कारनोवेग ट्यूबर्कुलिनम फेफड़े में विकार आने पर उपयोगी हैं | इनपर विशिष्ट अध्ययन और प्रयोग विधान की तैयारी चाहिए | कुछ लोगों का कहना है की उपरी निर्देश अनुसार दुकानों में इम्यूनिटी बनाए रखने हेतु बिक रही है तथा उनलोगों को अपने परिवार में उनको ( कई दवाओं को ) एकसाथ दो – दो बूंद करके रोज खिला रहे हैं | इस बिंदु पर आयुष की ओर से ध्यानकर्षण ज़रूरी है ताकि दवाओं का दुरुपयोग न हो ।

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