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 विश्व और कोरोना
सत्ता , विद्वता और जिन्दगी पर उठता प्रश्न

  डा ० जी ० भक्त

 कोरोना नामक वैश्विक संक्रमण ( पैण्डेमिक ) सम्भवतः आधुनिक युग में प्रथम घटना है । इसने विश्व की सेहत कई रूपों में बिगाड़ रखी है और थमने का नाम नही ले रही । जहाँ तक जगत में सभ्यता संस्कृति के विकास की कहानी प्रचलित है उसके समानान्तर मानव तो कई मील के पत्थर पार कर आज वैज्ञानिक वरमोत्कर्ष , आर्थिक समृद्धि और सामरिक शक्ति को मजबुत कर विश्व में महाशक्ति बनने की होड में जोड़ लगा रहे है , वही पर कोरोना से जंग जीतने में कभी विराम पाते है तो कभी कई कदम पीछे भी हटते पाये जा रहे । लड़ाई तो जारी है । विधान सोचे जा रहे है । प्रयास तेज है । इसी में सत्ता को परेशानी , अर्थव्यवस्था में कमी और जीवन के साथ मानवता की क्षति एक बड़ी समस्या के रुप में चुनौती बढ़ाती ही जा रही है ।

 इसी बीच ऐसा देखा गया कि संक्रमण का घटाने और रोग को भगाने का समुचित साधन उपलब्ध नही पाय गया । सर्व प्रथम दुनियाँ मे वैक्सिन पर अनुसंधान निकालने की बात उठी लेकिन चिकित्सा हेतु दवा पर शोध प्रारंभ न हुआ । सावधानियाँ बरती गयी । सफलता में जो कमी पायी गयी उसका कारण सावधानी का समुचित पालन नही होना मात्र पर ध्यान जा टिका । चिकित्सा की त्रुटियों पर विचारा नही जा रहा ।

 कोरोना जंग के जेहादी योद्धा तो आज तक यह स्पष्ट नहीं कर पाये कि यह कैसा मर्ज है उसके समग्र लक्षण क्या है । चिकित्सा जो चल रही है उका आधार सिर्फ संक्रमण को ( + ) ve या ( – ) ve मान कर हों ।

 एलोपैथी में पेनिसिलिन का बढ़ चढ़कर प्रयोग चला जिसका साइड इफेक्ट पेनिसिलिनोसिस कहा गया । उसके लिए होमियोपैथिक दवा थूजा का प्रचलन प्रशंसनीय रहा । आज तक प्रचलित है ।

 वैक्सिन के संबंध न्याय विशेषज्ञ अरविन्ध धोष ने बताया कि अबतक प्रचलित वैक्सिन अपना दूरस्थ य दूरगामी प्रभाव डालकर गम्भीर असाध्य , कष्ट साध्य या सर्जिकल रोग पैदा करता रहा है ।

 इस खामी के बचाव पर चिन्तन कर डा ० हैनिमैन महोदय ने अपने विधान के अनुसार महामारियों का जेनियस एपिडेमिकस दवा का निर्धारण लक्षण , समष्टि के अनुसार कारगर दवा का प्रयोग किया । फिर आगे चलकर किसी विकसित संक्रमण जय रोग का डिजीज प्रोडक्ट से नोसोड दवा का निर्माण कर उसे ही वैक्सीन के स्थान पर उच्च पोटेन्सी ( 200 शक्ति ) में प्रयोग को प्रशस्त पाया ।

 मानवता पर पड़ने वाले दुष्परिणाम एवं अन्य सभी प्रकार की परेशानियों से बचाव के लिए होमियोपैथ के नोसोड दवा का ही प्रयोग अपेक्षित है । इस विधान का ज्ञान और लाभ करीब विश्व के अधिकांश देशों को प्राप्त है । उन्हें शंकाओं से दूर रहकर इसका प्रयोग करना चाहिए ।

 रोगी को मात्र ( – ) ve अवस्था में लाकर आप उसे मुक्त कर देते है उसके स्वास्थ्य की पूरी जाँच कर शरीर में Antigen में वृद्धि पाकर ही उसे छोड़ना चाहिए ।

 किसी रोगी को , जो कोरोना से संक्रमित होकर इलाज में गया ( + ) ve था । इलाज के बाद वैक्सिन भी लिया , फुल डोज और उसके साथ अन्य सिन्ड्रोम आया अथवा डबल संक्रमण हुआ । अब तीसरा होने जा रहा है । उसे ऐसा मान लेना कि वह भी कोरोना का ही स्वरुप है कहाँ तक उचित है इसे विशेषज्ञ को स्पष्ट करना चाहिए ।

 वैक्सिन लेने पर शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है । एन्टिजेन तैयार होता है । जब पहले किसी को A.T.S. का टीका पड़ता था तो उसकी समय सीमा 6 माह निर्धारित होती थी । उसके अन्दर कोई संक्रमण का खतरा नहीं माना जाता था । अगर आज क्रमिक संक्रमण पाया जाता है तो हम उसके शरीर में पहले से क्रॉनिक रुप में कई रोगों के इतिहास पा सकते है जो कोरोना संक्रमण में आयी शारीरिक एवं मानसिक गड़बड़ी से जुड़कर नये रुप में अवश्य ही प्रकट हो सकता है , उसे कोरोना का नया म्यूटेटेड फार्म मानना या डेल्टा ( + ) या तीसरा संक्रमण मान लेना इसकी वैज्ञानिकता प्रभावित होती ह या नहीं , इसका प्रमाण सामने आये , तब जो उचित ( विज्ञान सम्मत ) प्राकृतिक नियम विधान से समर्थित या अनुपयुक्त चिकित्सा का दुष्परिणाम मानकर चिकित्सा को जाय , इस पर विचारना होगा ।

 ऐसे सारे प्रश्नों के संबंध में स्पष्ट विचार धारा भी सत्ता द्वारा या स्वास्थ्य विभाग द्वारा स्पष्ट कर देना होगा ताकि जनमानस में भय या चिन्ता बढ़ने न पाये । अगर राज सता को अर्थव्यवस्था चरमराती दिखें तो व्यवस्था एवं इलाज की प्रक्रिया म नरमी का असर मानवता पर होने वाली क्षति का जिम्मेदार कौन होगा ? ऐसी समस्या पर पूरे विश्व की सत्ता , चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग सहित आम जनता एवं समाज कल्याण से जुड़ी संस्थाओं को आगे आकर सोचना और सहयोग करना जरूरी होगा ।

 मेरा अपना मत है कि होमियोपैथी के शोधकर्ता डा ० हनिमैन द्वारा प्रतिस्थापित सिद्धान्तों और चिकित्सा विधानों के अध्ययन और पुनपरीक्षण कर देखा जाय तो कोरोना के विषय में लाभ की पूरी सम्भावना बनती है । हमारे देश में CCRH जो संस्था है , उनकी कृपा हो तो हम लाभ की आशा कर सकते है । इसके अतिरिक्त भी बहुतेरे मानवतावादी संगठन है जिनका सहयोग पाने के लिए सत्ता और संगठन दोनों को आपसी संवाद के लिए आगे आकर विमर्श करना ही उसके प्रश्न का सही उत्तर निकल सकेगा ।

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